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APPENDIX II.
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ऋषि के रामन भाई । ता पर राम कृपा अधिकाई ॥ करि असनान ध्यान मन धरेहु । लबन राम कर सुमिरन करेहु ॥ हरष समेत सगुन पुनि वांचै । यह मत सकल ऋषिन कर सांचे || प्रश्न सा सत्य जानि मन भाई । भाषा धोकल सिंह बनाई || रति रमल प्रश्न समाप्तम् शुभम् सम्बत् १९१८ कार्त्तिक कृष्ण सप्तम्यां शनिवासरे सीता राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम ।
Subject. - रमलशास्त्र ।
51(a)_Dhruva Dāsa krita Bānī by Dhruva Dasa. Substance—Country-made papor. Leaves-262. Size-8" x 6". Lines per pago—16. Extont — 7074 Ślokas. Appearance - Old. Character—Nagari. Place of Deposit-Pandita Rāma Chandra Vidyaratna, Bhārata Aushadhalaya, Mathurā.
Beginning. - श्री राधावद्धभोजयति || श्री हरिवंशचन्द्रो जयति ॥ अथ ध्रुव दास कृत वाणी निष्यते ॥ प्रथम जोव दसा || चापई || जोब दसा कछ इक सुनि भाई हरि जस अमृत तजि विष पाई || १ || किन भंगुर देह न जानो || उलटी समझि अमर हो मानो ॥ २ ॥ घर घर नीकेँ रंगये। गच्यैः ॥ छिन छिन मै नट कपि ज्या नाच्या ॥ ३ ॥ करो न कबहूं भजन समारी ॥ सा मगन भयो व्यव हारी ॥ ४ ॥ वय गइ वीति जाति नहि जानी ॥ ज्यों सावन मलिता को पाना ॥ ५॥
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स्वासा या घट में चलें ॥ जौ विछुरै तो बहुरि न मिलै ॥ ६ ॥ माया सुष में य पटना | विषै स्वाद ही सर्वमु जान्ये ॥ ७ ॥ श्री कृष्ण भक्ति से कबहु न राच्या ॥ महा मूढ़ बड़े सुष सुं वाच्यैा ॥ ८ ॥ काल समय जब प्राय तुलानो ॥ तन मन की सुधि सबै भुलानो ॥ ९ ॥ रसनाथ कीन वाल्या जाई वार वार मन में पछिताई ॥ १० ॥ जम किंकिर तव दई दिषाई || महाभयानक प्रति दुखदाई ॥ ११ ॥ रंचन स्याम (भ) क्ति उर आई ॥ या दुप में अव कौन सहाई ॥ १२ ॥ राम राम पीड़ा दुष पावे || हरि के हरि विन कैन छुड़ावै ॥ १३ ॥ ताकैौ नाम नु यौ अभागे ॥ कहं सेावत सुपन न जागे ॥ १४ ॥ अव मुष नहि निसरत हरि बागी ॥ वाय पित्त कफ घेरौ मानी ॥ १५ ॥
Middle. - अथ नेह मंजरी लिष्यते ॥ चापई ॥ श्री वृन्दावन साभा की सीवां ॥ विहरत दाउ मेलि भुज ग्रोवा ॥ राजत तरुनकिसेार तमाला ॥ लपटी कंचन वेलि रसाला ॥ २ ॥ ग्रहण पीत सित फूलनि छाये ॥ मना वसंत निज धाम बनाये || ३ || वरन वरन के फूलनि फूली ॥ जहां तहां लता प्रेम रस भूली ॥ ४ ॥ तीनि भांति के कमल सुहाये ॥ जल थल विगसि रहे मन भाये ॥ ५ ॥ बहुत भांति के पंक्षी बोलै ॥ मार मराल भरे रस डालें ॥ ६ ॥ त्रिविध