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APPENDIX II.
वजाइ वन वासरो सा वस कोने वदन विलोकै परे प्रेम को लपट में । जन्म जन्मां. तर मै दुष्यता न हाइ हैं कछू असा कृष्ण कान्ह को ध्यान धरै घट मैं ॥ ३३ ॥ पेट में पेठ परीछत राषियो कूवर दूर करौ कुवजा को। दारिद दूर करौ धीरज
राम को राषिया द्रोपदी को लजा को। काटत है। अघ आगे न जाई राषत है प्रभु धर्म धजा को रे भज तास उपाइ सभै तव भटे हैगे वही देह रुजाको ॥३४॥ सुष मै जु अराधियै केसव को दुष काहे ललै सभ जानत है। वही जानते नही मानत है जव दुष लज्ञो फिर ध्यानन है ॥ घन स्याम अरे पटु पीत धरै सगरे भव कै भय हानत है। भज रे तज पार उपाइ सवै जाइ पूग्न दृष्य वषानत है ॥ ३५ ॥ छप्पै ॥ मंगलकारी कृरण कान्ह जगपति परि जाको। तुम ही मेटनहार दुषित का देह ह जाको ॥ वैद्यन को वैद्यन को जस दान ज्ञान दोजै धोरन को। परा रहै तुम सरन भजा तुहि पद नीरज की ॥ मंगन ते निश्चै भयो जु लाज्ञो तुम्हरे पंथ मै। प्रभु सिद्ध करी औषद सवै जु राषी है या ग्रंथ मै ॥ २६ ॥ इति श्री सारस्वत धिर्ज गम कृते चिकित्सा सार ग्रंथ संपूर्ण समाप्तं ॥ शुभं भवतु ॥ श्री॥ .. Note. -पुस्तक का निर्माण काल यों दिया है :- "सून्य चंद वसु चंद वर्ष विक्रम सुभदायक" । ___No. 60. Ramala Prasna by Dhaukala Siinha. Substance-Country-made paper. Leaves-11. Sixe-5" x 21". Lines per page-8. Extent-150 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1918. Place of Deposit-Sarasvati Bhaņdāra Lakshinaìa Kota Ayodhyā.
_Beginning.-श्री गणेशायनमः श्री गणपति सारद मुमिरि लषन जानकी राम ॥ चरण कमल सब के करत धौकल सिंह प्रणाम ॥ १ ॥ निगमागम भृमुर वरण वस्तु लेव विवारि । नभ सित रवि तिथि सहित पुनि पर्व प्रकार निर. धारि ॥२॥ सिय कारण सौमित्र युत एक समय रघुनाथ ॥ सिंधु पार डेरा किये भालु कोश सब साथ ॥ ३ ॥ चौसठि ऋषय बुलाइ कै बोले श्री रघुराई ॥शत्रु मरन जेहि विधि वन कीजै साइ उपाइ ॥ ४॥ बचन मुनत रघुनाथ के सकल ऋषिन सुष पाइ॥ विविधि सगुन मत साधि के सम्मत सकल मिलाइ ॥ ५ ॥ सुमिरि राम रघुवंसमणि चरण कमल चित लाइ ॥ चासठि घर को चक तब लीन्हो तुरत बुलाइ ॥ ६॥
End.-प्रब जापौर प्रश्न तुम ठानो । सा पुनि सिद्धि सकल विधि जानी॥ द व प ६४'अव यह प्रश्न पीछली पाई । तामे सब सुष सिदि भलाई ॥ चीसठि