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भैया रतनपान जू विरचिते प्रेम रत्नाकरे संपूर्ण || दोहा || इक वांना दुजै आकास फल कैसे छूया जाइ || प्रेम पंथ प्रति कठिन है सकै न हाथ छुवाइ ॥ १ ॥ ॥ २९ ॥ दाहा प्यारी तुम मति जानिये ते हि विछुरै माहि चैन ॥ सदा उसासन लेत हों भरि भरि आवत नेंन ॥ ३० ॥ इति श्लोक संख्या ॥ ४२५ ॥ वैसाष शुक्ल ७ ॥ चंद्रवासरे || संवत || १९०९ || शुभं भवतु ॥ कल्याणं ॥
Subject. - प्रेम के लक्षण उदाहरणादि वन ।
No. 48. Mahābhārata Sabhāã Parva, Vana Parva, Karna Parva, 'Gada Parva by Dharma Däsa. Substance-Brahma paper. Leaves-626. Size-15" x 9". Lines per page-19. Extent- 6260 Ślokas. Appearance — Old. Character—Hindi. Date of Composition - Samvat 1711. Date of Manuscript - Samvat 1927. Place of Deposit - Pandita Harivamsa Dina, V. Māsikā, Allāhābād.
APPENDIX II.
Beginning.—श्रो गणेशायनमः कथा समापर्व वंदा पवन कुमार | पल बन पावक ग्यान घन जासु ह्रिदय आगार बसहि राम सर चाप धरि ॥ १ ॥ छ ॥ छ || छ || छ || श्री गुरु चरन सरोज निज मन मुकुर सुधारि वरनौ रघुवर विमल जस जो दायक फल चारि ॥ २ ॥ आपर अर्थ ना जाना नहि गुन ग्यान उपाइ राम चरित कछु वरना श्री गुर होहु सहाइ ॥ राधा कृष्ण ॥ चैापाई ॥ प्रथमहि वंदा दिन मनि देवा । आदि सिष्टि जाकह जग सेवा ॥ जेकरे उदइ राति दिन होई | त्रिभुचन का जग भजै व काई ॥ संध्या प्रात पुनि कइ रासी ॥ रिषि अम्यासब करहि वेद अभ्यासी ॥ ते जन सहिह गिरिह निचराने ॥ दानव मारि विम्ब अवसाने || अति सुंदर अव अम्वर लाला || लालै सव सुगंध मनि माला ॥ तोनिलाक नावहि सिर जाऊं ॥ उतपति प्रत्नय हाथ सव ताके ॥ सव कै प्रदि अदित के नंदन | अरुन सारथी त्रिमिर निकंदन ॥ उचई श्रवा एक रथ वाहन || वारिज बंधु सिंधु अवगाहन || दाहा ॥ जेा कविता सविता कहं "संतत जपहि समाज" || धर्मदास यह निश्चै करि सिद्धि होइ सव काज ॥ छ ॥ छ ॥ छ ॥
End.—धर्मदास पहि भांतिन्ह सभापर्व विस्तार ॥ वैर क कारन एतक समुझि लेहु सवार || चौगई ॥ छ ॥ संवत साह प्रसिक कर भएऊ || सत्रह सइ इगिन रह गएऊ || वसुधा साहि जहां कइ साके ॥ उपमा रिपु वरियार न ताके ॥ विद्या उपइह देस डहारा ॥ सेगर साहि प्रताप भुयारा ॥ महासिंघ ताकर जुवराजा ॥ दान जुध्य कइ जाला लाजा ॥ ग्रासन देव कविईक जाहां ॥ कुमुभ द्विष्टि वरषदि सुताहा सेा नरसिंघनि सुप्रासु दीन्हा ॥ धर्मदास कवितव पह कोन्हा ॥ पुन्य कथा यह पाप हरई ॥ नार नारी यह सुनतर तरई ॥