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APPENDIX II.
. . Beginning.-श्रीगनेसापनमः श्री पाथी कोक सार लीष्यते। वरना गनपती वीघन वीनासा । जेही सुमीरे सुधी वुधी प्रगासा ॥ सव दोन वंदा सुर सरी माता । वंद्या सक्त सुधी वुधो दाता ॥ भरमति वधी पतालहि देवा । दास दोगपाल करही जीही सेवा ॥ सहस सम जगत सुलताना। तही नेवास अगरे स्थाना ॥ सेर जहगीर और सुलताना । तेन्ह पप पारन निज थाना ॥ दोहा सत्रह सौ पचहतरी हम जे सुना दस सीस । सदन पात्र मह देखा एक हजर पचीस ॥ चौपाई॥ नंदी नाम पंडीत एक भएउ । पहीले ग्रंथ कोक उन कहेउ ॥ पुनो पुत्रा कवि अति मतीमाना । काम फल उन्ह भल पहिचाना ॥ सीधी जोग कर उपमा साई । पह विधि काम सोधता हाई ॥ काम फल वरना रची सा सुनत रसा सरसी फवसी होइ ॥ दाहा ॥ वहुते ग्रंथ विचार ते हाइ वहु नही रेप । दास वोध के कारने कीपउ कथा संछेप ॥
__End.-हरै जंगी पैसा भरि चकवड के वीज पैसा भरी गाइ को दही मो पोसी करै रोज एकइस तव विनग्र कंडा सेा खाजुलाइ कै लगावै तो दाद चंगा हाई।
Subject.-कोकशास्त्र । No. 45(a). Bāraha Khadi by Dattalāla. SubstanceCountry-made paper. Leaves-30. Size-6" x 53". Lines per page-8. Extent-250 Slokas. Appearance-Old. Character -Nagari. Place of Deposit-B. Purushottama Dasa, Bisrāma Ghata, Mathura.
Beginning.- From page 7. ऐ काठे देकरिधके ध स्वाठ कया कछ लेदिन सके रहे है जहां तहां के ॥ दत्तलाल धुनै ॥ जब मसतिग जब मसतिग जब जू मदे गाठ के ॥ १२ ॥ डडा डरिया रे नरौ डाइन । डोलै नारि ॥ दिन सो बचना कठिन है औ षडि को धार ॥ षांडे धार बनी अति नोकी जीवन ही सुष पावै॥ जीव निकसि या दुष सुष किसका वैरनि पान सतावै ॥ नारि पराई है दुषदाई नर को नरक चलावै ॥ दत्तलाल साहिव से सांचे परतिरिया न सुहावै ॥ ढढा ढिढी रासदा फिरोया फिरीया घट घट माहि ॥ पंचारब सै घट भीतर कैसे बसिवातेरा ॥ एक परायौ काम विगारै डेरा॥ ऐ पांचों मे है ता कहावै मन का वांधै मेरा। दत्तलाल फिरै भवसागर सतगुरु मिल्या सवेरा ॥१४॥
End.--हाहा होहो हस्त थे हा हरि हसै म काई । अभि चलै साई चले से कलिहि चलना होय ॥ आजि कालि में चलन हमारा भार पै करि घुरका ॥ सावधान विच कडक दीजै वैहैन वनै सतगुर का ॥ इसी वैहैल में पाष भरोजै ॥