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________________ APPENDIX II. 138 जांनै कोई ॥६॥ ताते तिन अब करुणा कोन्हो ॥ मो सेवक को पाशा दीन्ही ॥ सव लोकनि को हित मन धारी ॥ मम उर है भाषा विस्तारी॥७॥ जाकों वांचै सुनै सुनावै ॥ ध्यान धरै ऊंचे सुर गावै ॥ तेते लहैं ज्ञान बैरागा॥ प्रेम भक्ति हरि को अनुरागा ॥ ८॥ प्रेम प्रवाह मगन नित रहैं ॥ भव दावनिक ते नहि दहैं। अस है करि ब्रह्म समावै । तजि ग्रानंद कदे नहि आवै ॥९॥ कवहूं करै काम न कोई ॥ यातें लहै सकल सा साई । तातें जे जे होंहि सकामा ॥ अरु जे वड़ भामो निह कामा ॥१०॥ तिनि सवहिन को भाषा येहा ॥ भुक्तिरु मुक्ति भक्ति को ग्रहा। तातें यासों कीजै प्रोति ॥ यहै सकल संतनि की रीति ॥ ११॥ संवत सेालह सय वाणवा ॥ जेठ शुक्ल षष्टो कुज दिवा ॥ संतदास गुरू पाज्ञा दोन्ही ॥ चतुरदास यह भाषा कोन्ही ॥ १२॥ दाहा ॥ परम ज्ञान परगट कह्यौ मम घट है जिनि देव॥ ते मेरे उर नित वसे संतदास गुरु देव ॥ ४३ ॥ २९ ॥ ५९ ॥ इति श्री भागवते महापुराणे एकदश स्कंधे श्री शुक परोक्षित संवादे भाषायां श्री कृष्ण वैकुंठ पया नाम इकत्रिंशोध्यायः ॥ ३१ ॥ एकादश स्कंध (समा)तः ॥ दोहा श्लोक चौपाई नु को संख्या क्रम सों जाननी अथ सक (ल) ग्रंथ की संख्या निरूपणं ॥ ४३ ॥ १३८५ ॥ २३७२ ॥ संवत १८ ॥ इकतालीस का ॥ ४१ ॥ मांस जेष्ट सुदी दुतिया ॥ २॥ पुस्तक लिखतंश"..."अलवराम जो के सिष्य नगर बुरहानपुर तापी गंगा तटि........."गोज सराम जो के संगि मूरति छवीस ॥२६॥ छावनी मैं लि............"स्तक एकादस संपूरणं ॥ समाप्त जो कोई लि पढ़ ता......"तजै श्री महराज ॥ श्री कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण राम राम श्री कृष्ण॥ Subject.-भागवत एकादश स्कंध का हिन्दी अनुवाद पद्य में। No. 41. Gita Govindārtha Sūchanikā by Chintāmaņi. Substanco-Country-made paper. Leaves-40. Size-111" x6". Lines per page-20. Extent -800 Slokas. Appearance-old. Charactor-Nagari. Date of CompositionSamvat 1816. Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur State. ____Beginning.-श्री गणेशायनमः ॥ कवित्त ॥ सुन्दर सुभग अंग प्रातसी कुसुम सा नेन कंज ग्रेन कहि बेन मुसिकाए हैं। वाम भाग राधा तिहि प्राधा येक वांह धारे वाधा के हरन रति पति को लजाये हैं ॥ साभा के निधान सव सुष के विधान जानै देवनि प्रधान रसंगात सरसाये हैं। कहें कवि चिंतामनि प्यारी प्यारे लाल सुनों रीझियै पहार सिंह यामें मन भाए हैं ॥१॥ मेधैरिति सवैया ॥ मेघनि अंवर छाह लयो पुनि भूमि तमालन से प्रति कारी। रेन डरातु गोपाल घनों ग्रह जातु गलै वृषभानु दुलारी । नंदनि देस को पार चले प्रति वृत्तनि मारग केलि पसारो।कूल कालिन्दी विलास करें जय राधिका माधव कुंजविहारी॥२॥
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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