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APPENDIX II.
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जांनै कोई ॥६॥ ताते तिन अब करुणा कोन्हो ॥ मो सेवक को पाशा दीन्ही ॥ सव लोकनि को हित मन धारी ॥ मम उर है भाषा विस्तारी॥७॥ जाकों वांचै सुनै सुनावै ॥ ध्यान धरै ऊंचे सुर गावै ॥ तेते लहैं ज्ञान बैरागा॥ प्रेम भक्ति हरि को अनुरागा ॥ ८॥ प्रेम प्रवाह मगन नित रहैं ॥ भव दावनिक ते नहि दहैं। अस है करि ब्रह्म समावै । तजि ग्रानंद कदे नहि आवै ॥९॥ कवहूं करै काम न कोई ॥ यातें लहै सकल सा साई । तातें जे जे होंहि सकामा ॥ अरु जे वड़ भामो निह कामा ॥१०॥ तिनि सवहिन को भाषा येहा ॥ भुक्तिरु मुक्ति भक्ति को ग्रहा। तातें यासों कीजै प्रोति ॥ यहै सकल संतनि की रीति ॥ ११॥ संवत सेालह सय वाणवा ॥ जेठ शुक्ल षष्टो कुज दिवा ॥ संतदास गुरू पाज्ञा दोन्ही ॥ चतुरदास यह भाषा कोन्ही ॥ १२॥ दाहा ॥ परम ज्ञान परगट कह्यौ मम घट है जिनि देव॥ ते मेरे उर नित वसे संतदास गुरु देव ॥ ४३ ॥ २९ ॥ ५९ ॥ इति श्री भागवते महापुराणे एकदश स्कंधे श्री शुक परोक्षित संवादे भाषायां श्री कृष्ण वैकुंठ पया नाम इकत्रिंशोध्यायः ॥ ३१ ॥ एकादश स्कंध (समा)तः ॥ दोहा श्लोक चौपाई नु को संख्या क्रम सों जाननी अथ सक (ल) ग्रंथ की संख्या निरूपणं ॥ ४३ ॥ १३८५ ॥ २३७२ ॥ संवत १८ ॥ इकतालीस का ॥ ४१ ॥ मांस जेष्ट सुदी दुतिया ॥ २॥ पुस्तक लिखतंश"..."अलवराम जो के सिष्य नगर बुरहानपुर तापी गंगा तटि........."गोज सराम जो के संगि मूरति छवीस ॥२६॥ छावनी मैं लि............"स्तक एकादस संपूरणं ॥ समाप्त जो कोई लि पढ़ ता......"तजै श्री महराज ॥ श्री कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण राम राम श्री कृष्ण॥
Subject.-भागवत एकादश स्कंध का हिन्दी अनुवाद पद्य में। No. 41. Gita Govindārtha Sūchanikā by Chintāmaņi. Substanco-Country-made paper. Leaves-40. Size-111" x6". Lines per page-20. Extent -800 Slokas. Appearance-old. Charactor-Nagari. Date of CompositionSamvat 1816. Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur State. ____Beginning.-श्री गणेशायनमः ॥ कवित्त ॥ सुन्दर सुभग अंग प्रातसी कुसुम सा नेन कंज ग्रेन कहि बेन मुसिकाए हैं। वाम भाग राधा तिहि प्राधा येक वांह धारे वाधा के हरन रति पति को लजाये हैं ॥ साभा के निधान सव सुष के विधान जानै देवनि प्रधान रसंगात सरसाये हैं। कहें कवि चिंतामनि प्यारी प्यारे लाल सुनों रीझियै पहार सिंह यामें मन भाए हैं ॥१॥ मेधैरिति सवैया ॥ मेघनि अंवर छाह लयो पुनि भूमि तमालन से प्रति कारी। रेन डरातु गोपाल घनों ग्रह जातु गलै वृषभानु दुलारी । नंदनि देस को पार चले प्रति वृत्तनि मारग केलि पसारो।कूल कालिन्दी विलास करें जय राधिका माधव कुंजविहारी॥२॥