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APPENDIX II.
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End.-अथ कवि कुल कथनं ॥ छप्पै ॥ गौतम मुनि कुल्ल तिलक मिश्र भूधर भूधर सम ॥ सुफल अहलुवा अल्लि राम पद दरस विगत तम ॥ तिनकै वेद सुरूप मिश्र भए नंदराम जू॥ तिन सुत तुलसीराम मिश्र गुग्ण गणित ग्राम जू॥ तिन्हकै सुत मिश्र खुस्याल भे रामकृष्ण तिनि जस धरन ॥ सुत मिश्र चतुर्भुज तासु जो अलंकार आभा करन ॥ ८५ ॥
....... निर्माण काल॥ संवत रस निधि वसु शशी शिशिर मकर गत भानु ॥ माघ असित तिथि पंचमी सुर गुरु समै प्रमानु ॥ ......" सवैया ॥ स्याम सरोरुह दाम मनोहर अंग प्रभा इनु नैननु छावा ॥ माधुरी सा मुसुकांनि सुहावनि जानि परौ चित चैप जगावो ॥ दुलह संग सिया दुलही मिली दै भुज अंश प्रशंसत आवा ॥ दंपति हू रघुनायक जू पद पंकज मंजु न हीय बसावा ॥ ९०॥ दोहा ॥ सिया रमण रुकिमिणि रमण राधा रमण उदार || भक्त रमण करुणा रमण सा प्रभु करी प्रचार ॥ ९१ ॥ सव गुण धाम ॥ पूरण काम ॥ मन विश्राम ॥ जै थी राम ॥ ९२॥ इति श्री मन्म्हाराजाधिराज जदुवंशावतंस श्री मन्नृपेंद्र वर भूप वलवंतसिंघ हेत मिश्र चतुर्भुज कृता अलंकार मामा संपूर्ण तामगात् ॥ श्री जानको वल्लभो जयतितरां श्री सीताराम जयति सुभं ॥
Subjeot.-अलंकार । No. 40. Bhāgavata Ekādasa by Chatura Dása. Substanco -Svadesi papor. Leaves-205. Sizo-8" x 5". Lines per page 11. Extent-4228 Slokas. Appearance-Old. Character -Nagari. Date of Composition-Samvat 1692. Date of Manuscript-Samvat_1841. Place of Deposit -Janaki Pustakalaya, Bulandasahar. ____ Beginning-मत नर मेसा ॥ भये कोटि छपन कुल जादव ॥ ज्यों धन घमडि चहूं दिसि भादव ॥ ६॥ तिनको वहुत भांति विस्तारा ॥ गिनतो करत लहै को पारा ॥ भवन यापन कम ना कोयो ॥ नव निधि जहाँ बसेरा लोया ॥७॥ बहुरि सुधर्मा सभा मगाई ॥ वैठे तहां न व्यापे काई ॥ तिनको समता कौन बताऊं ॥ तीन लोक मैं कहूं न पांऊं ॥ ८॥ तिन की बात कहत अब प्रैसी ॥ पलक मांहि सुपर्ने की जैसो ॥ चारि घरी मैं सव संहारे ॥ ज्यों बुदबुदा पवन के मारे ॥९॥ राम कृष्ण तहं कौतिकहार ॥ आपुहि पापु सकल संहार ॥ विप्र श्राप को कोन्हों व्याज ॥ प सब कृष्ण दंव के काज ॥ १०॥ ___End.-असी विधि भव दुख मिटावै ॥ अपने परम पदहि पहुंचां ॥ कृष्ण रूप तिनि ज्ञान सुनायो ॥ उद्धव जिन निज पद पहुंचाया ॥ ५॥ सा लै कह्यौ संस्कृत व्यास ॥ तातें हो इन अर्थ प्रकास ॥ जो पंडित जानै पेसाई ॥ द्वजो कदे न