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APPENDIX II.
Charaoter—Nāgari.
Date of Manuscript - Samvat 1909. Place of Deposit-Pandita Chandra Sēna Pujārī Gangā-ji-kā mandira, Khurja, Bulandasabar.
Beginning. - श्री गणेशायनमः ॥ अथ श्री सुषदेव जो के दास चरन दास जी कत ज्ञान स्वरोदा लिष्यते ॥ दोहा ॥ नमो नमो सुषदेव जी परनाम करूं अनंत ॥ तुम प्रसाद स्वर भेद कू चरन दास वरनंत ॥ १ ॥ परसातम परमातमं ॥ पुरन विसमाबिस ॥ प्रादि पुरस प्रवचनतु तुह ताहि निवाबहुं सिस ॥ २ ॥ कुंडलिया || अऊ से कहैतद्दु ( कहत हैं) अक्रूर साहं जान ॥ निह अछर काया भई स्वासा रहित है ॥ ताहि कुं मन आन ॥ ताहि कुंमन प्रानि ॥ पते दिन सुरत लगावो ॥ थापा आप विचार और नांसिस निवावा ॥ चरनदास समर्थ कहत है (ग) म निगम कि सिष ॥ येहि वचन ब्रह्म ज्ञान को || मानो विसमाविस ॥ ३ ॥
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End.—भेद सरोदे वहु (त) है सुछम कहो वनाई । ताकु समैझ विचार पाप चित्त मन लाये ॥ २२४ ॥ धरन टरे गिरिवर टटरै सुनु मित । वचन सरोदा ना टरे कहै दास्त रनजीत ॥ २२५ ॥ सुषदेव गु० सुसाध दया सुजान । चरन दास रनजीत ने कहा स्वरोदै ज्ञान ॥ २२६ ॥ छप्पे | डहरे के मेटा जमन (जन्म) नाम रनजि (त) वषाना । मुरलि को सुत जान जात दूसर पहिचानो ॥ बाळ प्रस्था महि बहुरि दिल मै आया रमत मिले सुषदेव नाम चरनदास धराये। जोग जुगति हरि भक्ति करि ब्रह्म ज्ञान दिठायो पातम तत्त विचारि कैरिज यामे सत सत रहा ॥ २२७ ॥ इति श्री चरनदास जी क्रत ज्ञान स्वरादा संपूर्ण || संवत १९०९ लिष्यतं ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ..............
Subject. -- स्वरोदय- श्वास यादि से विविध विषयों का ज्ञान ।
Note - कवि का नाम चरनदास । असननाम -- रणजीत । ये महाशय वाल्यावस्था ही में रमते हुए 'सुषदेव' नाम के एक साधु से दीक्षा ले उनके शिष्य भी हो गये थे और उसी समय ये 'चरन दास' नाम से सिद्ध हुए ।
पुस्तक संरक्षक के पुस्तकालय में इसकी एक प्रति और भी है जो संवत् १९४० में लिखी गई है। दोनों को मिला कर देखने से यही मालूम होता है। कि दूसरी पहली को ही प्रतिलिपि है ।
No. 38(d). śabdon ke Mangalāoharana by Charana Dasa Substance-Country-made paper. Leaves-42. Size-6" x 6". Lines per page—12. Extent – 500 Ślokas. Appearance---Old. Character—Nāgari. Place of Deposit - Sarasvati_Bhandāra, Lakshmana Kota, Ayodhya.