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________________ APPENDIX II. 127 मेरावा ॥ देषे तह नृप मयूर मन भावा ॥ दीन्हेउ भूप मुसबर घोरा॥ चकवा विदा कीन्ह नृप मोरा ॥ बहुत हर्ष तब कीन्ह नरेसा ॥ सेरणा सहित चले निज ऐसा ॥ चकवा ग्राउ जहां रह राजा ॥ नृपति उजीरहु प्रउ मिलि गाजा ॥दोहा॥ पालइ राज हंस तब हर्ष पुरित भउ देह ॥ गयउ मयूर देस निज दुहु नृप रहेउ सनेह ॥ ९९ ॥ इति श्री चांद संग्रहीत हितोपदेशे संधि नाम चतुर्थ कथा समाप्तः संवत् १६६५ वर्षे कार्तिक सुदि सप्तमी वार शुक्रवार सुभ दिणे लिप्यते सुभमस्तु ॥६॥ नगर जौनापुर बादिसाह धो साहि सलेम श्री साहि अकबर का जेष्ठ पुत्र पुस्तक लिषा टीकम नरायचंद श्री माल विमृणालिया गोत्र सुभमस्तु ॥६॥६॥ Subject.-संस्कृत हितोपदेश का भाषानुवाद। पृ० १ मंगला चरण, वन्दना गौतम स्वामि की, बन्दना गणेश की, शारदा को, दुर्गा की, ब्रह्माविष्णु और शिव की, ग्रह नक्षत्रों को, देवनाग तीर्थ दिशा, पवन, प्रनल, जल, कंकण, वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, माघ, हर्ष, वररुचि आदि प्राचीन कवियों की और कलियुग के कवियों की। पृ०२-१३ कथारम्भ-मित्र लाभ प्रसंग । पृ० १३-२८ सुहृद्भेद नाम द्वितीय प्रसंग । पृ० २८-५६ विग्रह और संधि कथा वर्णन । ___Note.-निर्माण काल-संबत पंद्रह सय जव भयऊ ॥ तिरसठि बरस अधिक चलि गयऊ । फागुन मास पाष उजियारा ॥ सुभ नछत्र सातइ ससिवारा ॥ दोहा ॥ तेहि दिन कवि प्रारंभेउ । चांद चतुर मन लाइ ॥ हितोपदेस सुनत सुष दुष वयराग्य नसाइ॥ ___No. 37. Tatrva-samjha by Chandana Raya. Substance -Country-made paper. Leaves-22. Size -8" x 48". Lines per page--12. Extent-330 Slokas. Appearance-Very old. Character-Nagari. Place of Deposit-Lala Bhagvati Prasada, Anūpasahar, Bulandasahar. ___Beginning.-श्री रामचन्द्रायनमः ॥ अथ तत्व संज्ञा चंदन राय कृत लिख्यते ॥ दोहा ॥ तत्व संज्ञा नाम वहु तत्व अनेक प्रकार ॥ कर वंदन गुरु के चरण चंदन वरन विचार ॥ अथ ऋगुण नाम ॥ सत गुण रज गुण तमो गुण ये तोनों परमान ॥ इन कर यह सव श्रेष्ट है मुनिवर करत वषान ॥ अथ ज्ञान इंद्रिय नाम ॥ श्रवण त्वचा अरु चक्ष कहि जिह्वा घ्राण प्रमान ॥ पांची इंद्री ज्ञान की ये कवि करत वषान ॥ अथ सक्ष्म इंद्रिय नाम ॥ शब्द स्पर्श अरु रूप रस गंध जानि वुधवंत ॥ सूक्ष्म इंद्री ज्ञान की ये वरनत सव संत ॥ अथ ज्ञान इंद्रो देवता नाम ॥ दिग अरु वायु अरु सूर्य कहि वरुण जानिये एव ॥ पुनि अस्वनी कुमार युत ज्ञान इंद्रियन देव ॥ अथ कर्मेंद्रिय नाम ॥ वाक हस्त पद गुदा कहि पंचम सिषण ज होइ ॥ कर्म की इंद्री सकल ये वरनत पंडित लाह ॥
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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