________________
APPENDIX II.
126
मति कुशली ॥ ८॥ पिता को यह देस उजरौँ ब्रजमही दहली॥ वृदावन हित रूप मानों स्याम रंग रली ॥९॥१॥
___End.-गर गनै वेदी रची भांवरी सुविधि फिराइ वरु पाइ त्रिभुवन मषि रुकिमिनि सत्य व्रतनि मनाइ ॥ २२॥ वांकुरो साको किया जदुवंश जदुवंश विरद वुलाइ मुनि देव करत प्रसंश जै जै नमह सब्द कराइ ॥ २३॥ पै अरघ भीतर भवन लीये हरषि देकनी माइ वृंदावन हित रूप दिन दिन सुजस मंगल गाइ ॥ २४ ॥ (अपूर्ण वोध होता है)। ___Subject.-इसमें वृदावन दास के तीन छोटे छोटे पद हैं-(१) और (२) ये दोनों भक्ति रस के । (३) रुक्मिणी जी के विवाह की भारती का पद ।
No. 35. Padmavati Khanda by Chanda. SubstanceCountry-made paper. Leaves-62. Size-8" x 68". Lines per page-21. Extent-1270 Slokas. Appearance-old. Character- Nāgari. Date of Manuscript-Samvat 1929. Place of Deposit-Pustakālaya Mākhana ji kā, Mathurā; Bābū Lāla Pyārē Lala, Sata-gadha.
Beginning.-श्री गणेशायनमः अथ पद्मावती षंड लिष्यते ॥ दोहा । पूरव दिसि गढ गढ़न पति समद सिखिर गढ वंग। विजैपान राजा रहत जादव कुलह अभंग ॥१॥ हय वितुंड जाके बहुत पातसाह जिमि चाल । प्रवल भूप सेवत रहत कैहत करत जो हाल ॥२॥ छप्पै ॥ घन निसांन बहु साथ नाद सुख जतीन दिन । दश हजार हय चढ़त हेमनग जटित साज तिन ॥ गज अनेक शत पांच प्रबल सेना तहां लष्षह । इक नाइक जहां दलन चलन सामंत सु ररुषह ॥ दश पुत्र एक दारा विमल दया धर्म चौकस उघर । भंडार लक्ष मालिक अधिक पद्मसेन कूमर सुघर ॥३॥ __End.-संझिमराय कुमार की वोलि हजूर नरेश ॥ हय गय मणि मानिक वकसि अध पासन अध देश ॥ २२ ॥ और सूर सामंत सव कर इनाम पहुंचाय ॥ है प्रसन्न वैठ्यो तषत सा यह संझिमराय ॥ २३ ॥ याकी सुनि कनु कोजियै यथा शकति सनमान | कवहूं हारि न मावहीं पांच पचाश प्रमान ॥ २४ ॥ जो न देय कछु सु वृथा होइन कबहूं जीति ॥ वहु कलेश पोड़ा बढ़ रहै सुचंदग गीति ॥ २५ ॥ पाल्ह खंड पूरन भयो कह्यौ चंद कविराइ ॥ पढ़े सुनै सोखत रहै ताकै सुभट सहाइ ॥ २६ ॥ इति श्री कवि चंद विरचित प्रथोराज रासो तथा पाल्ह खंड संपूर्णम् समाप्तम् मिति वैशाख शुक्ला ४ चतुध्यों शनौ सम्बत् १९२९ ॥
Subject.-पृथ्वीराज रासे का पद्यावतो खंड।