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APPENDIX II.
सुनि प्रार्थना पचीसो ॥ ७ ॥ २५ ॥ इति श्री प्रार्थना पचीसी पदबंध वृंदावन दास जी कृत संपूर्ण ॥ १ ॥
Subjeot.—प्रर्थना - श्री राधाकृष्ण की ।
No. 34 (k). Radhā-janma-utsava Vēli by Brindāvana Dāsa Substance-Country-made paper. Leaves-24. Size - 102 x 6 inches. Lines _per_page—18. Extent --- 432 Ślokas. Appearance-old. Character-Nāgari. Place of DepositRangilala, Kosī, Mathura.
Beginning.—श्रीगणेशाय नमे ॥ श्री राधा वल्लभा जयति ॥ श्री हरिवंश चंद्रोजयति ॥ अथ श्री राधा जन्म उत्सव वेलि लिष्यते ॥ दाहा ॥ गुन अनंत तुम महा मादुति प्रति अकथ अनूप ॥ पित सम वरनें भव चरित वृंदावन हित रूप ॥ १ ॥ दोहा ॥ कोरत की कछ निस रहे सपुन भयै सुभ प्राय || प्रेम सहित वरनन करें वृंदावन हित ताय ॥ २ ॥ कवित्त || आदर भाव भयौ रस मंगल मूरति प्रकास प्रतिसै उजास व्रषभान जू के धाम की || रावल सबावल को कापै कही प्रावै छवि निरवधि मानंद उदधि वाढ गाम गांम की ॥ वृंदावन हित रूप लली के जनम आज || रंग कौने और कहूं छोर सुष अभिराम कौ ॥ कहां ध सच्यो है दई दाऊ इन अक्षर मद्धि विप्र हू विक्यौ है प्रेम धरन राधा नाम कै ॥ ३ ॥ कवित्त ॥ नंद द्वार नावत सव आप हो ते बाज उठो नाना राग रागनी से मंगल छनि छाई है | घर घर में धातुन के वाजन बजन लागे सब हो की मत से अचरज इकाई है ॥ बरकन में गोधन वृंद थर्नानि ते दुग्ध थियो दिसाहू प्रकासन भजै घुनि सुहाई है || वंदावन हित रूप रावल उदात राधा जनमत वधाई लोक सगुन सुनाई है ॥ ४ ॥
End. - कवित्त ॥ कीरत मुसकानी बात हिये की जानी सब इत उत सुष सानी रनमास महा हरषै ॥ लली लाल ही दुलरावें राम राम सचुपावै वेद मंत्रना गांवें चित देवन प्राकर ॥ मुनि गूढ़गुन वषाने सिव चिन्मत हैं ध्यानें अज लीला में भुलाने से रूप नेने परषै ॥ वृंदावन हित के कौतिक जानि तके सि दोऊ श्रुतवित के अति तरंग वरषै ॥ १०२ ॥ कवित्त || पहा रांनी बार बार देत हैं सीस हम लली लला दाऊ नित जननीन सुख दीजिये ॥ जैसें अव किलक किलक खेलत हैं एक ठौर मे यह पही विध एक जारी कीजिया || कीरत जसुमति किया है व्रज मंगल मय गौर स्याम पाला न्हात वार जिन छोजिया || वृंदावन हित रूप अमी सां श्रवत हैं वधू सुनों एजू प्रान सुधन दाऊ चिरजीजिया ॥ १०३ ॥
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Subject – श्री राधा जो के जन्मोत्सव की बधाई ।