________________
APPENDIX II.
121
स्टो॥८॥२५॥ इति श्री जग निवेद पचोसो पद बंध वृंदावन दास जी कृत संपूर्ण ॥३॥
Subject.-भक्ति और ज्ञान के पद ।
No. 34 (6). Prarthana Pachisi by Brindavana Dasa. Subs. tance-Country-made paper. Leaves-10. Size-8 x 6} inches. Lines per page-19. Extent-296 Slokas. Appearanoe--old. Character-Nagari. Place of Deposit-Lala Nānhaka Chanda, Mathurā.
Beginning.-श्री राधावल्लभा जयति श्री हरि वंश चंदोजयति श्री हित रूप गुरभ्यो नमः॥ अथ श्री प्रार्थना पचीसो पदवंध लिष्यते ॥ राग कान्हरौ॥ श्री हरिवंश कृपा गहि नाको ॥ गौर म्याम लरजै तानातै तव रस स्वाद मिलै दुहूं धां को ॥१॥ सुद्ध भावना हिये झाकहै लगहि न भजन कालिमा टांको ॥ परम धर्म थोरै सुमेर सम और धर्म मैं ललुन छटाकों ॥२॥ मनां राचि राधा सुहाग सुष दृढ व्रत एक न दूजी प्रांकौ ॥ नील पीत पठधरन सेवतें जोति गये जिनको जस वाकी ॥३॥ जुगल भजन के श्रोता वक्ता प्रेम भक्ति प्रानक दियो डांका॥ अलभि लाभ प्रभु के घर पायो तिन सरार करें कोनु कहां को ॥ ४॥ धर्म रतन धर्मी जु पारपू ताकी मितो कहा जानै राको ॥ दुहुं विच समझि राति दिन अंतर ऊंट वैल जिनि रथ चढ़ि हांकौ ॥ ५॥ कहा साभा संपति कानन को कहां कर्म जड मलिन सदां को ॥ ऊंच नीच गति को वह भागो यह निर्भय पद दास जहां को ॥ ६॥ पादरि रसिक चले जेइहि मग और वापुरेनु गमिन तहां कौ ॥ वृदावन हित रूप रंग रस वरषत सदा परतु नहि झांका ॥७॥
End.-कान्हरौ ॥ कृपा कलपतरु स्यामां दोसी ॥ भांति भांति आनंद वरसनो माहि अभयदा विसे जु वोसी ॥१॥ करुनालय प्रतिपालय प्रनितनि ताकि कौनु करैगो रोसी ॥ दश्ता कृष्ण मुकटमणि लोकनि उपमां जा लषि फिरति डरो सी ॥२॥ मृदु पालाप सुनत जाके मुख प्रीतम छातो हाति हरी सो ॥ रास विलास सषिनु सुष पोषनि को है पैसो भाग भरी.सी॥३॥ नाना कौतिक कानन करता रस अगाध जहां लगति झुरी सी ॥ जासु दृष्टि तें रहसि कुंज को रसिमनि पाई वस्तु घरी सी ॥४॥ जिन अनभव कीयौ या रस को ताकी उर कपाट उघरी सी ॥ काहू विधि न परै जन ऊंनी जाकी सवल वांह पकरी सो ॥५॥ श्री राधा सुहाग परसंशति जे कहियति हैं लोक वली सी॥ दियो अधिकार अषिल ब्रह्मांडनि पुनि ईस्वर्ज किया वकसी सी ॥६॥ मो विनती इतनी गौरंगी वात कहाँ उर पाइ परी सो ॥ वृदावन हित रूप स्वामिनी लरजों