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________________ APPENDIXII. 119 इहिं भाव मगन जिन उर निरदूषन ॥ वृदावन हित तिन पद एज मेरे सिर भूषन ॥ २६२॥ इति श्री रास उत्साह वर्द्धन वेली वृंदावन दास जी कृत संपूर्ण ॥ निर्माण काल। ठारह से इकतोस वर्ष पाछै सुदि सावन । श्री हरिवंश प्रसाद कथ्यो जस मेोद बढ़ावन ॥ Subject-पृ० १-७ वृदावन को शोभा, राधा और कृष्ण का श्रृंगार और छवि वर्णन-पृ०७वंशी को शोभा और महिमा-पृ०८ रास वर्णन । No. 34 (h). Ishta Bhajana Pachisi by Brindāvana Dāsa Substance-Country-made paper, Leaves-17. Size-8 x 61 inches. Lines per page-19. Extent-504 Slokas. Appearance-~old. Character-Nagari. Place of DepositLālā Nānhaka Chanda, Mathurā. Beginning.-अथ श्री इष्ट भजन पचीसी पद वंध निष्यते ॥ रागभैरी । श्री हरिवंश चितायो जैसें ॥ भजि मन राधा पति की गैसें ॥ प्रीति प्रतोति राषि ज्यों वरनी ॥ परम इष्ट वृदावन धरनी ॥२॥ करि दृढ़ वास प्रदूषित रहि रे॥ नाम राधिका वल्लभ कहि रे ॥३॥ लीलारास विलास गाइ रे ॥ मिलि रसि: कनि दुलराइ भाइ रे॥४॥ दुर्लभ यह नर तन जु पाइ रे ॥ विषै विवाद नव गमाइ रे ॥५॥ गौर स्याम के भजन लागिरे ॥ सावै जिनि गुर कहैं जागिरे ॥६॥ चेति चेति इहिं विधि मन मीता ॥ जुगल प्रेम को वरनों गीता ॥७॥ यह हित रूपी सुधन महा रे ॥ सेइ पाइ है अलभि लहारे ॥८॥ वृदावन हित रूपी रचना ॥ स्यांमा स्यांम चरित उर सचनां ॥९॥१॥ . End.-गुर समरथ को सरति गहि जो मारग दैहि चिताइ ॥ साधु संग मिलि पहुंचि है चित दै राधापति गाइ ॥ ६॥ लष चौरासी पुर जहां रे याही वन के माहिं ॥ फिरत फिरत वीते कलप मिल्यौ मादि अंत तऊ नांहि ॥७॥ कबहूं मान्यौ छत्रपति रे कबहूं मान्यो रंक ॥ वृथा मनोरथ करि थक्यो त भन्यो न हरिदै अंक ॥८॥ धीरज वांध्या प्रगति पथ रे हरि पथ भयों अधीर ॥ वीच पर विललातु है तेरी कैसे मिटि है पीर ॥९॥ पाषंडिनु की सिष सुनै रे संतनि सौं सतराह ॥ जही प्रात्य जु पासुरी कहि कैसे हरि पुर जाह॥१०॥हीनों हिय को दृष्टि सैरे वंधी दाम गर जाति ॥ दिनमणि हरि की भकि को सठ मानतु प्राधी राति ॥ ११॥ कृपा मेरु करुना उदधि गुर संत देषि अकुलात ॥ तिनको सिष मानें नहीं वरजत जम लाते षात ॥१२॥ सुकृति हरि मारण लगे
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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