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________________ APPENDIX II. 117 रूप निधि दंपति उर अहिलाद ॥ ४॥ केलिदास हस्ताक्षरनि लिप्यो रसिक प्रिय कृत्य ॥ गुरु भक्ता सेवी जुगल xxxxxxx ॥ इति श्रो नाम समय प्रबंध पद वंध पचीसी वृदावन दास जी कृत संपूर्ण ॥ Subjeot.-पचीसी-७ पृष्ठ १. मंगल समय प्रताप-१-१७ २. प्रात वन विहार सिंगार-७-१६ ३. कुंजनि कौतिक तथा राजभोग-१७-२५ ! नामानुसार वर्णन ४. उत्थापन समय वन विहार-२५-३१ . ५. रास उद्दीपन तथा रास-३१-४१ । ६. वन विहार चांदनी कुंज वैठक-४१-४९ ७. सैन समय सज्या विहार-४०-५६ No. 34 (f). Sri Krishna-vivaha-utkantha Vali by Brindavana Dasa. Substance-Country-made paper. Leaves-60. Size-8 x 64 inches. Lines per page-19. Extent1,780 Slokas. Appearanco-old. Character-Nagari. Date of Composition-Samvat 1831. Place of Deposit--Lala Nānhaka Chanda, Mathurā. Beginning.- अथ श्री कृष्ण विवाह उतकंठा वेलो पद वंध लिप्यते । राग रामकली ॥ श्री हरिवंश कृपा जु वली रे ॥ मिलन राधिका वल्लभ चाहै तो यह सुगम गली रे ॥१॥ गुर हित रूप चिताय असें तू लषि भांति भली रे ॥ वंदे रसिक अनन्य सवनि की इहि विधि पास फलो रे ॥२॥ लीला ललित रस भई वजपति नंदन भानलली रे ॥ वरनि माहि ले हित सौ रसना ज्यों होइ रंग रत्नी रे ॥ ३॥ इहिं पथ लागि जाउं वलि तेरी अषिल सुषनि अवली रे ॥ वृदावन हित रूप सुमति देहु तुम विभु प्रनित पत्ली रे ॥४॥१॥ राम कली ॥ उर अभिलाष वाढी घनी ॥ गुर हित रूप पुजाइहैं करि मना पद नवनीं ॥१॥ वज रस सिंधु अगाध अंजुरी देहु यमसि रमनी ॥ लिषित जाचतु दीन करौ सुदृष्ट लोचन मनी ॥२॥ अर्कि रचना गोप ग्रह दुरि रमत लोक निधनी ॥ नर लीला माधुर्ज रसिकनि हेत ही थर्पनी ॥३॥ End.-कछु स्यानै कछु तोतले वचन कहत नंदनंद ॥ जननी भाग्य मनाइ के भोजति परमानंद ॥२॥ वाल केलि के लाड को महरि लयो सुष जोर ॥ शिव विधि सेश जु सारदा कनिका लह्यो न सा ॥ इक सत पर उनतीस.
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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