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APPENDIX II.
भई उतपन्य ॥१२८ ॥ ठारह सै पर तीस पुनि वरष जु प्रगहन मास ॥ कृष्ण पक्षि एकादसी वेली भई प्रकास ॥१२९ ॥ यहां गांऊ ध्यांऊ जु यह याही सुष की पास ॥ गोर स्यांम हित रूप पै वलि वृदावन दास ॥१३॥ कांमा मधि पूरन भई विमल कुंड के तीर । केलिदास मन दै लिषी प्रक्षर अर्थ गंभीर ॥ १३१ ॥ इति श्री आनंद वदन वेली वृंदावन दास जी कृत संपूर्ण ॥
Subjeot.-राधाकृष्ण का वर्णन तथा भक्ति के पद ।
No. 34 (e). Nauma Samaya-prabandha-sankhalā Pachisi by Brindavana Dasa. Substance-Country-made paper. Leaves-56. Size-8 x 61 inches. Lines per page-- 19. Extent--1.662 Slokas. Appoarance-old. CharacterNagari. Date of Composition-Samvat 1830. Place of Deposit-Lālā Nānhaka Chanda, Mathurā.
Beginning.-अथ श्री नाम समय प्रवध पद वंध संपला पचीसी सात लिष्यते ॥ प्रथम मंगल समय प्रताप पचीसी पद वंध लिष्यते ॥ राग भैरों ॥ ताल चर्चरी ॥ रसिक मणि चक्क वै वंदिये भार मल ॥ कृपा अवधि अरु अवधिरस दान मैं रे सुमति नर समझि वेगि परि चरन तल ॥१॥ परचि हैं राधिका लाल इन सरनि ते व्यासकुल सुधाधर पौषि करै उर अमल ॥ गाइ रे गाइ गारंग कमनी चरित तोहि अपनाइ हैं दया तिनके सवल ॥२॥ मानुषी जनम का लाभ लहि कहि सुजस पार है वासकानन महारम्य थल ॥ वृंदावन हित रूप भीजि रस भजन मैं निगम दुर्लभ वदित पाई है सा जु फल्ल ॥३॥१॥ भैरै भौताली ॥ सुरति रन कोविद दुलहिनि जगी निस पल न मुरी है ॥ रस लोभी दूलह उर अवहों कैन अनूपम काम गाभ अंकुरी है ॥ नव संगम भय भोर विदा करो विद्या का कहु हूं उरनि फुरी है ॥ वृंदावन हित रूप पहा कहा मन मिलि विहरत ग्रंथि जु प्रेम छुरी है ॥२॥
End.-राग विहागरी॥ रंग महल पाढे हैं रो दंपति तद्दपि दरसत प्रेमवली है ॥ उरझनि प्रेम कहा कही अंग अंग मन उत्कंठा वढति चली है ॥ रहि गये चिवुक प्रलोवत इत उत भये री नींद वम छवि जु भली है ॥ वृदावन हित रूप परस्पर प्रति विंवित तन दुति उझली है ॥ २५॥ इति श्री सैन समय सज्या विहार पचीसी पद वंध संपूर्ण ॥७॥ १७५ ॥ दोहा॥ सात पचीसी पद लिषे समये सात प्रधान ॥ मंगल ते लग सैन लो कियो विचित्र वषांन ॥१॥ ठारह से तीसा विदित नौमी माघ पुनीत ॥ गुरवार पुनि कृष्ण पछि कवि जुगल रस रीति ॥२॥ पति सै कमनी कामवन मुमति नरनि को वास ॥ श्री राधा जू सदन मधि भयो प्रबंध प्रकास ॥३॥ सुमति जथा वन्यों जु मैं श्री हरिवंश प्रसाद.॥ वृदावन हित