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APPENDIX II.
End-राग प्रसवारी ॥ जाचु जाय कोन पे घर घर ॥ श्री बलभ से पाये धनी । चवदे लोक में फिर फिर देषे आनंद अलप उपाधणी ॥१॥ सवि विरंच जाको सरनागति गावत मुनि जिन वेद धुनी ॥ २॥ प्रष्ट सिघ नव निध रमापति पखल भुवन के मुकट मनी ॥ श्री मुख वचन करत प्रति पालन भक्ति भाव भरो प्रापरणी सा प्रव करिदास्वत दिषावत कृष्ण वदन प्रगटे अग्नी ॥३॥ जा दिन ते भुतल पर प्रगटे दैवी जीवन को अधक वनी ॥ कृष्णदास गिरधरन सरन करि मटि गरो रवि सुत त्रास अणी ॥६॥
Subject.-वल्लभाख्यान की टोका। • No. 33. Samudrika by Brindavana. Substance-Countrymade paper. Leaves-33. Siz0-10 x 6 inches. Lines per page-13. Extent-315 Slokas. Appearance-old. Character-Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1916. Place of Deposit-Sarasvati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya. ___Beginning.-श्री गणेश जू श्री सरसुतीय नमः ॥ माथां ॥ सामुदक लियतं ॥ दोहा ॥ गुन अपगुन सव ही भले प्रथम विचारी माऊं ॥ जो सलता जल नाहिंनै तो कौन काम की नांऊ ॥ वाजन जोरि बरात के पान किष इक ठौर ॥ पहिले दुल्हा चाहिये जो बांधे सिर मार ॥ सकल अंग वरननि करी गुन अपगुन के भेद ॥ सुष दुष जीवन मरन के रचे विधाता भेद ॥ पहिलै पाऊं विचारि कै तब सब लाकन देह ॥ असथांन भीतं वनाइ के पीछे चित्र करेह ॥ जो गुरुमुष अरु वेद मुष वचन सुनै दै कान ॥ राज सभा तेहि कीन्हा प्रगट निदान ॥
End.-दीनदयाल दीन हितकारी दीन पुकारत वारंवारं ॥ जो जग जाल फंद को मेटी प्रभु मैं तासौ करत पुकारं ॥ मदसूदन मद हरौ नारि नर को कारो वेग हो छारं ॥ जन वृदावन सरनागत प्राओ ताकी करी वेग समारं ॥ इति श्री सामुद्रक क्रते संपूरनं ॥ सामापतं ॥ सुभं भवतु मंगलं ददातु ॥ पासाड वदि १३ संवतु १९१६ मू० टीकमगढ पं जैसी प्रत तैसो लइ उतार ॥१॥
Subject. सामुद्रिक ।
No. 34 (a). Rasika-yasa-varddhana-Vali by Brindavana Dāsa. Substance-Country-made paper. Leavos– 26. Size-8 x 64 inches. Lines per page-19. Extent-772 Slokas. Appearance-old. Character-Nagari. Date of composition -Samvat 1825. Place of Deposit-Lālā Nānhaka Chanda, Mathurā.