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APPENDIX II.
111 बोते हैं अनादि काल कैसे कैसे संकट सहे विसरतु हैा । तुम तो सयाने पै सयान इह कोन कोनी तोन लोक नाथ है के दोन सु फिरतु है। ॥ २५॥ पीयो है अनादि को महा अग्यान मोह मद ताही ते न सुधि याहि ौरे पंथ लीयो है। ग्यान विना व्याकुल है जहां तहां गिरयौ परै नीच उंच ठौर को विचार नाही कीयौ है॥ वकिवा विरानै वसि तनहुं की सुधि नाहि वूडै भव कूप महि सुनसांनि होया है। प्रैसा मोह मद मैं अग्यानी जीव भूलि रह्यो ग्यान दिष्ट देवो भैया कहा ताको जीयो है ॥ २६ ॥ देषत है। कहां कहां केलि करै चिदानंद पातम सुभाव भूलि औरे रस राच्यो है। इंदिन के सुष मैं मगन रहै पाठो जाम इंद्रिनि के दुष देष जानै दुष साच्या है ॥ कहीं कोध कहुं मांन कहुं माया कहुं लोभ अहंभाव मानि मानि ठौर ठार मांच्या है। देव तिरजच नर नार की गतिम फीरे कौन कौन स्वांग धरै इह ब्रह्म नाच्यो है ॥ २७॥ केऊ तो करै किलोल भामिनि सौ रोझिरोझि वाहो सौं सनेह करै कामराग अंग मैं । केऊ तौल आनंद लछि कोटि जोर जोर लछ लछ मान करै लछि की तरंग मौ ॥ केऊ महा सूरबीर कोटिक गुमान करै मो समान दूसरो न देष्यो कोऊ जग मै । कहै कहा भैया कहिवे की बात नाहि सवै जग देषियत राग रस रंग मै ॥ २८ ॥
Subjeot.-ज्ञानोपदेश । ___No. 32. Vallabhākhyāna ki Tika by Brijabhara Dikshitar. Substance-Country-made paper. Leaves-17. Size-10 x 6 inches. Lines per page-11. Extent-162 Slokas. Appearance-old. Character-Nagari. Place of DepositSri Devaki-Nānādanāchārya, Pustkālaya, Kāmavana Bha. ratapur State.
Beginning.-श्री गोकुलेश जयति ॥ अथ वल्लभाख्यान को टोका लष्यते ॥ श्रीमदा प्राचार्य चरण कमलेभ्योनमः ॥ श्री विठ्ठलनाथ चरण कमलेभौनमाः ॥ श्री बजा बजा पाभर दीक्षितेन व्याख्यान क्रियते ॥ तत्र पक समें ॥ श्री गुसाई जी श्री गोकुल तें राजनगर पधारे ता पास असारु पागाउ में भाईला कोठारो के घर पधारे तहां भाईला कोठारी ने अपने जवाई गोपाल दास रूप पुरा के वासी को प्रसाद लेवे को बुलाये तब श्री गुसांई जो पूछे यह कोन है॥ तब माईला कोठारी ने कह्यो जो गोमती को वर हे ॥ तब श्री गुसाई जी कहे जो गोमती को वर तो समुद्र चाहिये ॥ तब भाषला कोठारी ने कहे जो महाराज की कृपा ते यही समुद्र हाईगो ॥ ता पाछे पाप भोजन को पधारे ॥ भोजन करि के पाचमन कीये ॥ भाईला को कहेतु प्रसाद ले ॥ तब भाऐलाले गोपालदास साथ प्रसाद लोयो। पापु तो गादी पर विराजे वीड़ा परोगे ॥