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APPENDIX II.
106 मेवा ॥ जोत रूप भगवान विधाता ॥ पुरुष पुराण प्राण के दाता ॥ कमल नाम नारायण स्वामी ॥ सब जीवन के अंतर जामो ॥ प्रलष ईस जगदीस गुसांई ॥ जल थल मैं व्यापक सब थाई ॥ सनकादिक सुक नारदाद पाता ॥ जाके ध्यान धरै दिन राता ॥ जाको शिव विरंचि नित ध्यावै ॥ ध्यान हू मैं नहि दरसन पावै ॥ भेष अनेक धरै जग मांही ॥ ज्यों जल मैं दिनकर के छांही ॥ है सब में अरु सव ते न्यारा ॥ सकल सृष्टि के सिरजनहारा ॥ १॥ दोहा ॥ महिमा पुरुष प्रधान की से वरनी नहिं जाय ॥ शेष सहस्र रसना रट सके नहीं गुन गाय ॥
ग्रंथकार का परिचय पादि दोहरा ॥ सुनो मोन (1) अव चित्त दै लोला परम पुनोत ॥ कविताई पाई नहीं गहो प्रीत परतोत ॥ यों अब हैं। गुरु को महिमा कहै ॥ जिहं मांही पूरण पद लहैं। ॥ तिनको मेघश्याम शुभ नाम ॥ सिमरत सुनत होत विसराम ॥ परम प्रवीन पुनीत गुसांई ॥ भगत रीत प्रगटो सब थांई ॥ तिनके पिता भक्त पद पायो । जिन दामोदर नाम धिप्रायो॥ कंकल भट्ट प्रसिद्ध वषाने ॥ गुण मंगल कर सर गुग्ण जाने ॥ तिनके वंस जन्म उन लोन्हैं। ॥ वही अंस हरि इनको दोन्ही ॥ प्रथम तिलंग देश के बासी ॥ मथुरा वसे भक्त पर काशो ॥ हरि नागर को नाम सुनावै ॥ भवसागर ते पार लंघावै ॥ ४॥ दोहरा ॥ मेघस्याम कै नाम ते सिंह होत पस काम ॥ जामें आठो जाम है भूपन (त)को विश्राम ॥ चौपई ॥ भूपति ना हरि लीला गाई ॥ परम पुनीत सदा सुषदाई । ताहि उन्हें ए कायथ जानौं । लेषराज को सुत पहिचानों ॥ तिनकै पिता हरि हैं मन लाया ॥ वोठनदास नाम जिन पायो ॥ कन्हरदास उन्हँको भैया ॥ तिनके मन में बसै कन्हैया ॥ जिनह (न्ह) ग्रह कटै ईटावै मांहो ॥ रहै प्राय राजन के पांही ॥ कृष्णदास के सुत जग जानै ॥ ते सब कृष्ण दास करि मानै ॥ कन्हरदास भाई वड़ भागी ॥ जिनको मत कान्हर सौ लागी॥ जिनके वेस जनम धरि आयो ॥ भक्त अंस तिनहू को पायो ॥ ५॥ दोहरा ॥ गुन निधान के प्रेम सौ कोन्हैं। वुध प्रकास ॥ बहु विधना वानी दई जान पापुनो दास ॥ ___End.-चौ० ॥ दशम स्कंध महा सुषदाई । जो जन कहें सुने चित लाई ॥ और चित तें नित सुमिरन करें। सो नर नार भव सागर तरें॥ जग में सदा क्षेम से रहें ॥ पुन वैकुंठ धाम वै लहें ॥ प्रेसी विध सुकदेव गुसांई ॥ भागवत कथा कही इकठाई । स्रोता बहुत होत जहा नां(जो)ई ॥ द्विज रिषराज कहां कहां ताई ॥ तिन सभहन को दई असोसा ॥ तुम पर कृपा करे जगदोसा ॥ भूपत जन यह भाषा करो ॥ श्री भागवत भक्त उर धरो ॥ जो पद भ्रष्ट होइ जिह ठांई ॥ करा सिद्ध कथा जहां ताई ॥ दोहा ॥ महामूढ़ पति होन मति किनहू में हो नांहि । हरि लीला बरनन करो धरे भगत उर मांहि ॥ जो वालक निज तात सां बात कहत