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APPENDIX II.
Beginning. - श्री परमात्माय नमः ॥ श्री गणेशायनमः ॥ गुरु गणेस हरि भारती मापर होहु दयाल || साम सूर्ज दाऊ वंस हैं वर्नत है। भुवपाल ॥ राजावाच ॥ मन्वंतर जे चतुर्दस गाये ॥ तुम हमन सुने मन भाये || श्री पति के अवतार भये जितने ॥ नीके देव सुने हम तितने ॥ १ ॥ सत्य वृत्य महाराज्य कह्यो जोइ ॥ इति देस की भूपति सेाई ॥ प्रथम कल्प का कयौ वह राजा ॥ हरि सेवा करि मया श्रुति साजा ॥ मछ देह तैं ज्ञान तिह पाया ॥ कपा करो सु प्रलै ते
चाय ॥ अवकै कर मै रवि सुत सेाई ॥ श्राध देव मन नाम जिह हेाइ ॥ इक्ष्वाकु चादि दै पुत्र दस जाके || परम भागवत कहे तुम ताके ॥ ३ ॥ तिनके वंस की कहा तुम कथा ॥ सुत नाती दोहते भये जथा ॥ सुनिवे लायक वंस यह स्वामी ॥ कहै। कपा करि अंतरजामी ॥ ४ ॥ भूत भविष्यत कहै। वर्तमाना | जिनके जेते चरित्र निदाना ॥ सूत उवाच ॥ ब्रह्म रिषिन को सभा मैं जवै ॥ भैसें कही भूप नै तवै ॥ सुनि के सुक जु दया भये भारी || हंस हंसि अमृत वांनी उच्चारो ॥
End. - मंद मंद मुसक्यानि हैं जाकी ॥ भुकुटी सुभग नासिका ताकी ॥ अति रमनोक मूर्ति रसमई ॥ प्रगट सुनौ वसुदेव कै भई ॥ ६१ ॥ मकरा कृत कुंडल फवि बने || निज कपाल झलकें छवि वये ॥ साभित सरद विंद से नैन ॥ मुख सोभित जनु पंकज चैन ॥ कोप भरे कछू कंपन वाट || इहि छबि निरष मुक्ति होहि ठाठ ॥ ६३ ॥ ताते ग्रह भज गये व्रजवास ॥ अदभुत चरित कीये जु प्रकास ॥ व्रजवासीन का सुष दीया भारो ॥ व्रज जुवतोन विहरे जु विहारी ॥ ६४ ॥ कंस आदिदै नै वहु भूप ॥ जाय द्वारिका वसे अनूप ॥ शिशुपालादि असुर बहु हने ॥ ar कवि कृष्ण चरित्रन गर्ने ॥ ऊधौ को उपदेस जु दै क ॥ परमधाम को गये सुख पैक || ६५ || दोहा || सूर्ज साम दाऊ वंस का भीष्म जसु जु अपार ॥ पढ़ें सुनें प्रति प्रीत जुत से जन हाय भव पार ॥ ६६ ॥ इति श्री मद्भागवते महापुराणे नवम स्कंधे सेामवंश मध्ये जदुवंश वर्णना नाम चतुर्विसाध्यायः ॥ २४ ॥
Subject. - सूर्य और सोमवंश का वर्णन अथवा श्री मद्भागवत् नवमस्कंध का हिंदी पद्यात्मक अनुवाद |
paper.
No. 26 (a). Bhagavata Dasama Skandha by Bhūpati. Substance-Country-made Leaves-158. Size-10 x 6 inches. Lines per page-25. Extent--6,790 Ślōkas. Appearance-old. Character-Nagari. Date of composition — Samvat 1744. Place of Deposit - Pandita Gokula Chandraji, Dharmasālā GFirīsa Babū, Radha Kunda (Mathurã.)
Beginning. - प्रोम् श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः ॥ श्री भागवत दशम स्कंध लिख्यते ॥ चैापाई ॥ सिमरो आदि-निरंजन देवा ॥ जाका देव न जानत