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APPENDIX II. कवि पंडित हो गुनो नहों दोन जन संत ॥ चरथ पाइ निज तोषनिधि कहि समु. झायो नंत ॥ १०॥ आदि अंत में प्रापुही रहे जु प्रभु भरिपूरि ॥ छोड़ि तुमें प्रव जाऊं कहां जदुपति जोवन मूरि ॥१०१॥ दास दोन को होतु है निज मालिक पर जोरु ॥ ताते मेहूं ने करी अलवल परज करोर ॥ १०२॥ इति श्री दोन व्यंग शत समाप्तम् जब तें में प्रभु कोसुनों अधम उधारन नाम ॥ तव ते हो करने लगे समुझि २ घटि काम ॥
Subjeot: --परमेश्वर की स्तुति व्यंग वचनों से। No. 24 (b). Upālambha Śata, by Bhavāni Prasāda. Subs. tance-Country-made paper. Leaves-5 Size-7" x 53". Lines per page--20. Extent--125 Slokas. Appearance-old. Character-Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1916. Place of Deposit--Pandita Banavari Lalas, Hatharasa, Aligadh.
___Beginning.-श्री गणेशायनमः ॥ अथोपालंव शत लिख्यते ॥ दोहा ॥ श्री नारायण चरण रज धरि माथे पर भूरि॥ ग्रंथारंभन करतु हों वाचि हसा किनि सूहि॥१॥ कोई जन दुःख मति हटा देतु उरहने राम ॥ शत दाहामय ग्रंथ करि उपालंव शत नाम ॥२॥ पंचाली पति व्रत व धरि पटरूप अपार । जसी भए हरि पापु जू विहिं करे उपकार ॥ ३॥ चक्र जलधि को धार सेां देते कुरुनु वहाइ ॥ तो हरि हमहूं जानते पापुही करी सहाइ ॥ ४ ॥ भरही भारत में वची सा हम जानो भेद ॥ निज वाहन को जाति हरि समुझि भयो मन खेद ॥५॥ द्रोणाचल हनुमत धरा लेत न कोऊ नाम ॥ चिकने मुख तकि सब कहत गोवरधन घर श्याम ॥ ६॥ राजवंत नाता समुझि अर्जुन पालो भक्त ॥ दोन दुखो जन देखि हरि तुमहूं होत असत ॥ ७॥ कान चूक शिशुपाल की हरि लाए हरि नारि ॥ भए कामवश पापहू नाता दियो विसारि ॥ ८॥ कान भूल राधा करि जाकों इतो वियोग कव हरि तपु कुवरी कियो जाको यह संयोग ॥९॥
End.-व्यास मोहिनी सनक हम नारदादि अवतार ॥ धरे ग्रायु जस सुख करन अब न होहु करतार ॥ १०१॥ कलि के जन परिजन करे नीच सुने हम राम ॥ तव ते ऊंचनु छोड़ि तुम वैठि रहे घनश्याम ॥ १०२ ॥ श्री नारायण पादि हैं श्री नारायण पंत विरचि प्रपंच रचना करी जहे वेद को तंत ॥ १०३ ॥ इति श्री उपालंव शत समाप्तम् ॥ सम्वत् १९१६ माघासित द्वादश्यां गुरु दिने लिखित मिदम कन्हैयालाल शर्मणा द्विजेन ॥ प्रथम भवानो पद धरो फिरि प्रसाद पद देहु ॥ ग्रंथकार का नाम यह जाति सुकुल करि लेहु ॥
Subject.-भगवान को उलाहना ।