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APPENDIX II.
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श्रवण करै जु येकहुवार । प्रति प्रभेद अंधकार को लेस न रहे लगार ॥ ३५ ॥ इति श्री भेद भास्करे गुरु शिष्य संवादे अद्वैत खंडने विशिष्टाद्वैत प्रतिपादने पंचमेाऽध्यायः ॥ ५ ॥ लिखितं श्री प्रयेाध्याराम कोट श्री हनुमानगढ़ी पश्चिम तट वैशाख वदी द्वादसी मंगलवारे सम्बत् १९२१ ॥
Subject :–पृ० १-२ - यतिराज श्री भगवान रामानुज की वंदना चौर प्रशंसा | पृ० २ - ३ - प्रतिविंग वाद का खंडन ।
पृ० ३-४ - निवृत्तिवाद का खंडन ।
पृ० ४-५- भ्रांति कृत भेदों का खंडन ।
पृ० ५-६ - सत्तात्रय खंडन ।
पृ० ६-७ – प्रद्वैत खंडन और विशिष्टाद्वैत का प्रतिपादन । No. 24 (a). Dina Vyaiga Sata by Bhavānī Prasada. Substance--Country-made paper. Leaves-5. Size - 72 x 5 inches. Lines per page-20. Extent-125 Ślōkas. Appearance—old. Character —– Nagari. Date of Manuscript— Samvat 1916. Place of Deposit - Pandita Banavārī Lala, Lakshapati_Mahalla, C/o Kesava Dēva Roriwäle_Hatharasa (Aligadh).
Beginning. - श्री गणेशायनमः ॥ ग्रंथ दोन व्यंग शत लिख्यते ॥ दोहा ॥ सुमिर तोषनिधि दोन जन दोन वंधु घनश्याम ॥ सैौ दाहा मय ग्रंथ किय दोन व्यंग शत नाम ॥ १ ॥ किती दूरि तें सुनि लई द्रपद सुता की टेर ॥ कानन कान्ह रुई दई दैया मेरी वर ॥ २ ॥ भरहो भारत भीर में राखी घंटा तोरि ॥ तेई तुम अव क्यों रहे मोही से मुख मेारि ॥ ३ ॥ कहा बरावत रावरे ग्रीडत मेरो भार ॥ गोवरधन से नांहि हो हाहा नंद कुमार ॥ ४ ॥ विश्वंभर नामे नहीं कि मई विश्व में नांहि ॥ इन दुई में झूठो कवन यह संसय मन मांहि ॥ ५ ॥ राम गरीब निवाजिरो तुम दिया विसराइ || भजन भूलि मेरि निरखि काहे रहति रिसाइ ॥ ६ ॥ ऊसर तजि बरसे न घन || लखे न पापनु मांहि ॥ मंगन के गुन गुनन दाता निरखत नांहि ॥ ७ ॥
End. - जो जिय मोहित जनय को वांधी फेंट मुरारि ॥ तो प्रभु ताते अपनी दोजे दास निकारि ॥ ९७ ॥ सहे जोनि संकट किते भक्तनु के अनुराग ॥ तव कछु दुख जानों न तव वांधी प्रभुता पाग ॥ ९८ ॥ कामादिक संगी किये हों गुम हो गुन होन ॥ नाथ डवारा करि कृपा जानि आपनो दोन• ॥ ९९ ॥ नहिं