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APPENDIX II.
नायका लछिन ॥ संदर सुघर नवीन जिहि लर्षे होत रस पानि ॥ ताहि वषानत नाइका ग्रंथन को मत जानि ॥ २॥ यथा ॥ लषिये मयंक मुष पागे न मयंक लुकि देषिये न लंक लचकीलो कसे डोरी के ॥ नेनक(न) की कार जति कानन चली सी उसली सी जाति प्रागी ढेले कुंचन को जारी के॥ पावै परसाद कछु पैन कह्यो मोहि प्रैसा मोहि गयो लोग सव आवत ही गोरी के॥ कैसै करि कहो कोऊ दे अब होरी देषो होरो कैसो लपट षरी है तट होरी के॥३॥ पुनः यथा ॥ सादो जेवदार जोरो पहिर सहज हूये जरकसी मोल कैसे करत उदोत है। कवि परसाद जाके अंग लाष हू को काम लाष हू का दाम बुरे करत है कोत है ॥ कैसे कै वषानिये छवोली की वनक पायो छवि देन वारेन हूं छविन को गोत है ॥ जाहि पहरें तें गहने को कहा गुन गनों ऐकु गुनों गहनों करोरि गुनों होत है ॥ ४॥दोहा ॥ होतनायका तीन विधि प्रथम सुकीया वाम ॥ दूजी परकीया कही तोजी गनिका नाम ॥५॥ ___End.-प्रतछ दरसन ॥ सपने में आयो जापै मन है लगायो चित्र हूं में लषि पायो जहि वड़ेई जंजाल से ॥ कवि परसाद जाके मिलिवे को गात रहे सदा ललचात सेा कहूं में कोन ज्याल से ॥ आयो ब्रजभूषन सेा साहिव हमारो तुम नेन हो हमारे सा विचारा इमहाल सां ॥ जारो दुष विरह को टारा लाज घरि यक पारो रसकेलि को निहारा नंदलाल सा ॥ २९० ॥ सत्रह से पचावनै सावन सुदि दिन रुद् ॥ रसिकन के सुष दैन को भी शृंगार समुद्र ॥ इति श्री महाराजाधिराज जगतराज विनोदार्थं कवि वेनोसप्राद क्रत शृंगार समुद्र नायक वनेन नाम द्वतीय प्रकास ॥ ग्रंथ समाप्ति ॥ संवत १८६३ मिती प्रथम श्रावण सुदि १३ सामवार मुकाम सवाई जैपुर लिषी॥
Subject.-नाइका भेद ।
No. 22 (a). Mahā Rāmāyaṇa (Yoga Vāśishtha) Upasama aur Nirvana Prakarana by Bhagavān Dāsa Khattri. Substance-Country-made paper. Leaves—562. Size--5 x 6 inches. Lines per page-14. Extent-8,000 Slokas. Appearance-old. Character-Nagari. Place of Deposit-- Bitthala. Dasa Purushottama Dasa, Bisrāma Ghatar, Mathura.
Beginning.-अथ उपशम प्रकरणे ॥ वशिष्ठउवाच ॥ हे राम जी इह संसार नामनी जो माय (7) है। सा अनंत है ॥ और किसी प्रकार इसका अंत नही ॥ जब चित्त वसि हावै ॥ तब इह निवर्त हो जाती है ॥ अन्यथा नाही निवर्त होतो ॥ परु जेता कछु जगत देषणे अरु सुनणे में प्रावता है । सो सम माया मात्र है सा माया रूपी जगत चित्त के भ्रम करि कै पडा भासता है । इसके ऊपर पूरव