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APPENDIX II.
No. 20. Mitra Manohara by Bansidhara Pradhāna. Substance-Svadēsi paper. Leaves-151. Size-8 × 5 inches. Lines per page-17. Extent -2,120 Ślōkas. Appearance-New. Character-Nagari. Date of compositionSamvat 1774. Date of manuscript - Samvat 1813. Place of Deposit Bābū Purushottama Dasa Tandana, B.A., LL.B., Vakil, High Court, Allābābād.
Beginning—श्री गणेशायनमः ॥ श्रीसरस्वत्यैनमः ॥ श्रोपरगुरुभ्येानमः अथ मित्र मनोहर लिष्यते ॥ छप्पय || धनिय धन्य वह ऐक वनिय रचना जातें प्रति ॥ सकल भ्रष्ट मंहं भ्रष्टि रचिव मानव अद्भुतगति || ज्ञानछत्र सजि सीस विविध विद्या मुकतनि मय ॥ पट अनूप सम रूप पहिर आरूढ़ हर्ष हय ॥ दिय दिल सुद्रेस उपदेस सम अधम अधर्मनि कौं छरहि ॥ कहि वंसीधर वर वचन तेइ पूजा सहित राजहिं करहि ॥ १ ॥ दोहा ॥ दीना चितु उपदेस मै सज्जन दिया
माहि || भाषा हित उपदेस यह ग्रंथ सुग्ध कौ होइ ॥ कथा चारि जे मुख्य हे वरनी जथा विधान || मित्र लाभ हित भेद पुनि विग्रह संधि निधान ॥ ३ ॥ मित्र लाभ यातै कहत कियौ मित्रता लाभ ॥ सुहृद भेद हित पंथ मै जमै भेद के दाम ॥ ४ ॥ विग्रह जामै जुद्ध की जमा जैौम जिय हाइ || संधि कहावै सील करि farer सुधरै साइ ॥ ५ ॥ चारि कथा इतिहास मैं कथा चारि वहु और || वंसीधर सुनियो सवै श्रोताजन सिरमौर ॥ ६ ॥ चटकीली है जे कथा चटकीली मन चैन ॥ सज्जन घटकोली गुननि दैहि चित्त की चैन ॥ ७ ॥ गुनवाहित उपदेस का दिलीनरेस समान ॥ मन सुवा सूवा सवै साधत समय प्रमान ॥ ८ ॥ सुवानो पहिलै सुनी गुहवानी संसार ॥ ताहि तहां जाहिर करो साहि जहां दरवार ॥ ९ ॥
End.-छप्पय ॥ वढहि मंत्र संह प्रीति जात सत्रन रह वढ्ढहि ॥ वढ़हि धर्म की वेल सुकत दोरघतर चढ्ढहि । वढ़हि बुद्धि दिन मान वढहि सततै सभा गुंजु || वढ़हि युवहु वर्ष वढहि प्रभु सों पनु अद्भुत ॥ सकते सनंद ग्रानंद मय मान महीप छत्तीस मनि ॥ कहि वंसीधर यह ग्रन्थ गुनि मित्र मनोहर नाम भनि ॥ ३६३ ॥ इति हित उपदेस राजनीति सास्त्रे प्रधान वंसीधर भाषा विरचतायां नर वानी मित्र मनोहर नाम प्रतिष्टतायां संधि कथा चतुर्थमकथा संम्पूर्ण समाप्तं ॥ सुभं मंगलददात श्री संवत ११३ साके सा (ल) वाहिने १६७८ ॥ दोहा ॥ फागुन सुदी है पंचमी अरु वुधवार वषानु || परना नगर मुकाम है राजतु सुभ अस्थानु ॥ १ ॥ जैसा पुस्तक देषियैा तैसैौ लिषिया सेाइ || सुद्ध असुद्ध जो होइ कहुं लेखक दोधु न होइ ॥ २ ॥ पाथी श्री लाला प्रमान जू की । जो वाचै याको सुनै नोको घरक धर्न ॥ जिन ही क परनाम है लेषक कहि जसकर्न ॥ ३ ॥ इति श्री मित्र मनोहर