________________
APPENDIX II.
'Beginning.-पथ गूढ सत लिषते ॥ संकर सुत संकर अमित सव संतन सुख दानि ॥ लंबोदर पानंदवर विघन हरन तुव वानि ॥१॥ तमाया तू मोहनी द साहति सुभ सार॥ भारति तुव भा जगमगति इहि विधि जगत अपार ॥२॥ कहर कुवरि सुजान मनि किय मायुस चित लाय ॥ रस सिंगार मत गूढ़ सन बल्लभ रचित बनाय ॥३॥ वंदन कै लवादरहि सुर सति को सिरनाय ॥ वरनों वरन विचारि के गृढ़ सतक मति लाय ॥ ४॥ अथ परमारथ रस ॥ अवै मिले। जुत सकै जवे बजै वट छांह ॥ सुनें अचल चल चल अचल को न हात जग माह ॥५॥ वंसी ॥ पई यक वरन मिले तिह चंदक सिर स्याम ॥ मनहु प्रभास इनेह की परो छोट पभिराम ॥ ६॥ केकी ॥ हूकै निकटे जगमगै इक सरिता तट नाम सो हरि अंग लसै सुथिर मनु दामिनि घनस्याम ॥७॥ दुकूल ॥ गकै ग्रास हित ढिग इकै तिनहि चरांवन हार ॥ निगम संस पज भव रटै लहै न तिह गुन पार॥८॥
End.-रिसन करि॥ पादित कै ढिग पलटि पल मनहु लसत पय फैन। सो प्रीतम बिन एक छिन ल सुहायन नेन ॥१०० ॥ तलप ॥ नई मिलै तातें तिजो घरन लिषो ढिग पानि ॥ पिय विछुरे पल तें गई यही माहि दुषदानि ॥१०॥ नोंद ॥ पव रग औ तव रग दुहुनि हर x x वरन वषानि ॥ अव न रहै व लों रह्यो चव कि पास जिय जानि॥१०२॥ x x x x x एक कनहि निरवाह । तजिहि स्वाति कन पान हिय फरै न कबहु चाह ॥ १०३॥ चातक ॥ अंतक । पादि च ग्रास हित वोचि तकै पन एक ॥ तजै पै न चितवै चवनि सागर सरित अनेक ॥१०४॥ चातक ॥ मधि नाव कहा अंत के आदि धकीए रोति ॥ एकै पन रत सकतवल जिह जग लोनों जीति ॥ १०५ ॥ कत चाको दै फेरिहै मति जिय के उनमान | जस क(छा)वो जिहि जग अमित कषि किमि करै वषान ॥ १०६ ॥ चातक ॥ कवि के तिह लघु सूरवै विरहनि सरस सुहाय ॥ इक दिन पाये पिय सदन बोलत वचन बनाय ॥१०७॥ इति गुढ़ सतक संपूर्ण ॥
Subject.~भगवान कृष्ण के अंग, शोभा, भूषण वसन प्रादि का वर्णनचौर भक्ति रस पूर्ण उक्कियां।
No. 19 (a). Sadhu Bandanā by Banārasi. Substance Country-made paper. Leaves-3. Size-52 x 6 inches. Lines per page-15. Extent-48 Slokas: Appearance-old. Character-Nagari. Place of Deposit-Rama Gopala Vaidya, Jahāngiräbäd, Bulandaśabar.
___Beginning.-प्रथ साधु वंदना लिष्यते ॥ दोहरा ॥ श्री जिन भाषित मारती। सुमिरि पानि मुख पाठ कहीं मूल गुण साधु के। परिमिति विंशति