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(६८) .पंदर बंधन छे. ते-डदारिक उदारिक बंधन, उदारिक तैजस बंधन. उ. दारिक कार्मण बंधन, उदारिक तैजस कार्मण बंधन, वैक्रिय वैक्रिय बंधन. वैक्रिय तैजस बंधन, वैक्रिय कार्मण बंधन, वैक्रिय तैजस कार्मण बंधन, आहारक आहारक बंधन, आहारक तैजस बंधन, आहारक कार्मण बंधन, आहारक तैजस कार्मण बंधन, तैजस तैजस बंधन, कार्मण कार्मण बंधन अने तैजस कार्मण बंधन ए रीते पंदर बंधन छे, ते पूर्वना बांधेला कर्म साथे नवां कर्मन एकमेकपणुं करी आपे छे. जेम माटीनुं वासण भाग्यु होय तो लाख चोड्याथी संधाय छे, तेम पूर्वना कर्म साथे नवां कर्म जोडी आपे छे.
पांच संघातन ते पांचे शरीरने नामे छे ते प्रकृति कर्मनां दलीयांने खेंचीन कर्मनी नजीक करे छे. पछी बंधन नामकर्मनी प्रकृति लखी छे ते एकमेक करी आपे छे. "हवे छ संघयण ते-वज्ररुषभनाराच संघयण. ते शरीरना हाडकांना सांधा एवा होय के एक बीजा हाथ साथे बन्ने कांडां पकड्यां होय तेम हाडकांना बंधारणना सांधा आगल होय, तेने मर्कटबंध कहे छे. वली बेसांधा तेना उपर पाटो होय, वचमां वज्रमय खीली होय एवा मजबूत सांधा होय तेने वज्ररुषभनाराच संधयण कहीये. ए संघयणवाळु शरीर अ. तिशय बलवान् होय. तद्भव मुक्तिगामी जीवने ए संघयण अवश्य होय; केम'कै ए संघयण विना क्षपकोण करी शके नहि ने क्षपकश्रोणि विना केवलज्ञान. पामे नहि. इहां कोई प्रश्न करशे जे ए संघयणवालो अवश्य मुक्ति जाय ? ते विषे समजवू के, ए संघयणवालो मुक्ति जाय ज एवो नियम नथी. ए संघयण पामीने प्रभुनी आज्ञा प्रमाणे सारां काम करे तो मुक्ति जाय ने प्रभुनी आज्ञा विरुद्ध दुष्ट कृत्य करे तो यावत् सातमी नरके जाय. सातमी नरके पण ए संघयण विना जता नथी. केम के सं. घयण बलवान् होय ते ज अतिशय बुरां काम करी शके छे, तेम सारां काम पण ते ज करी शके छे. हवे बीजं रुषभनाराच संघयण, वनमय