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नुष्यनों दुःख तो जुत्रोछो के घेडाओने रात्री दिवस नरक उपाडवू. पडे छ ने तेने एवं खावानुं मले छ, वली केटलाकने पहेवा वस्त्रं पण मलतां नथी. टांढ-तापनां दुःख भोगवां पडे छे. केटलाएकने कोढरोग, जलों. दर, विस्फोटक, दम विगेरे रोग थाय छे. केटलाएकनुं शरीर वाए फूली जाय छे हरातुं.फरातुं नथी. एवी अनेक रोगनी वेदनाओनुं दुःख रात्री 'दिवस सहन-थतुं नथी तेनी बूमो माल्या करे के रडे छे; तो आवा सख्त
दुःख पापना योगथी पाम्या छे. तेम ज वधारे पापथी नरकनां दुःख ना'स्तिक शिवायना सर्वे धर्मवाला माने छे. माटे. ए शंका करवा जेवू नथी. पापना फल तो अवश्यं भोगववां ज पडशे. माटे जेम बने तेम राग द्वेषनी परिणति ओछी करवी के जेथी पाप अोढुं बंधाय अने अनुक्रमे सर्व प्रकारे राग द्वेषथी मुक्त थवाय. • इहां कोई प्रश्न करे जे देवनी गति संजलना कषायथी बंधाय तो सव्यष्ठिने अप्रत्याख्यानादिकनो उदय तथा श्रावकने प्रत्याख्यानादिकनो उदय कह्यो छे, तो शी रीते देवगति बांधे ? ने विषे समजवू जे, जे वखते देवगतिनुं आयुष्य बांधे त्यारे संजलना कषायनो उदय होय, बीजा कपायोंर्नु गौणपणुं होय. एम ज मिथ्यादृष्टिने पण समजबु. दर्शनमोहनी त्रणे प्रकारे. सम्यक्तमोहनी, मिश्रमोहनी, मिथ्यात्वमोहनी, पहेलां मिथ्यात्वमोहनी- स्वरूप लखीए छीये. जे जीवे मिथ्यात्वमोहनी कर्म बांधेलु छ, तैना प्रभाव अढार दोष रहित एवा जे वीतरागदेव तेना उपर द्वेष वर्ने छे अने ए अढार दूषण सातमा प्रश्नमां लख्यां छे तेवा दूषणवाला देवने देव माने छे. वली गुरु जे हिंसामा तत्पर, मृषावाद बोले, चोरीनो पण नियम नथी, मैथुनमा अत्यासक्त, परिग्रह जे धन अने स्त्री राखे छे वली जेन तृष्णा पण रात्री दिवस बनी रही छे, सेवकने उपदेश दे छे ते पणे 'धनादिकना लाभने अर्थे; एवा निर्गुणीने गुरु तरीके स्थापे तेने तरण तारणं माने छे, नै जे पुरुषोंए ए पांचे अव्रतनो त्याग करयो छे अने पंच 'महाबत. अंगीकार करत्यां छे, पांच इंद्रियोना तेवीश. विषय छांड्या छे,