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वालो होय छे, गाडाना कीलना डाघनी माफक आ लोभ सहजमां शांत थाय छे, प्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया अने लोम ज्यां सुधी होय त्यां सुधी साधुपणुं प्राप्त थतुं नथी. आ कषायना प्रणामथी जीव मनुष्य गतिमां जाय छे. केम के ए कषाय पातलो छे.
संजलनो क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चारे प्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया अने लोभ करतां घणा हलका होय छे. संजलनो क्रोध पाणीनी लीटी समान कह्यो छे. पाणीमां लीटी करतांज जेम तुरत मली जाय छे, तेम कोइक कारणे क्रोध थाय; परंतु तुरत ज शांत थइ जाय. कोइ आकरं कारण मल्यु होय तो पण पख्खी प्रतिक्रमण कस्या पछी तो जरा पण द्वेष रहे ज नही. ए क्रोधनी उत्कृष्ट स्थिति पंदर दिवसनी छे. तेथी वधारे काल ए क्रोध रहे ज नही. ए क्रोधवालाने अंतरंगमां वधारे क्रूरता होय नही. संजलनुं मान नेतरना स्तंभ सरखं होय छे. नेतरना स्तंभने नमावतां वार लागे नही, तेम ए मानदशा वधारे वखत रहे नही. संजलनी माया पण घणी ज थोडी होय. सहजमां निष्कपटी थइ जाय; वांसनी छोल-जेम जरा वारमां सीधी थइ जाय, तेम ए कपट पण नहीं जेवू ज होय, जरा वारमा नाश पामे. संजलनो लोभ हलदरना रंग स. मान होय छे. हलदरनो रंग उडी जतां वार लागे नही, तेम ए लोभ मटी जतां वार लागे नही. संजलना क्रोध, मान, माया अने लोभ होय त्यां सुधी मुक्ति मले नही. ए संजलना कषाय जाय त्यारे मुक्तिनी प्राप्ति थाय,
पूर्वोक्त चार प्रकारना क्रोध, मान, माया अने लोभ नाश पामे त्यारे मुक्ति मले छे. माटे भव्य जीवे ए टालवानो उद्यम करवो. ए जेम जेम
ओछा थता जाय तेम तेम आत्मा शुद्ध थतो जाय छे. अहिंआं कोई प्रश्न करे जे संजलनो कषाय तो पंदर दिवस रहे छे, त्यारे बाहुबलजी महाराजने संजलनु मान वरस दिवस केम रह्यं १ ए विषे श्री हेमचंद्राचाये योगशास्त्रमा तथा यशसोमसूरीए कर्मग्रंथना बालावबोधमां खुलासों क.