________________
( ५३ )
डाह्या पुरुषना समजाववाथी पोतानो अहंकार छोडे छे. गमे तेवुं मान राखतो होय पण ते मान एक वरसथी वधारे काल रहेतुं नथी. अप्रत्याख्यानी मायावालो अनंतानुबंधी मायावालाथी ओछी मायावालो होय . पोतानी सहज मतलब सारु सामाने म्होढुं नुकशान थाय एवं कपट करे नही. अप्रत्याख्यानी मायाने मेंढाना शींगडा जेवी कही छे ते वांकाश जेम उपचार करवाथी मटी जाय छे, तेम आ मायावालो पुरुष कपट श्रीलुं करे छे. केटांक काम निष्कपटपणे पण करे छे. प्रत्याख्यानी लोभ नगरनी खालना कादवना रंग सरखो होय छे. ए रंग एकदम तो न जाय पण खार आदिवडे श्रतिशे महेनत करतां जाय छे. तेम आ लोभ पण अनंतानुबंधी लोभ करतां थोडो होय छे. लोभने अर्थे कोइने म्होढुं नुकशान करे नही. ए अप्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया अने लोभथी जीव तिर्यचनी गतिमां जाय छे; श्रावकपणुं पामी शकतो नथी. ए चारे कषाय जाय त्यारे जीव श्रावकपणं एटले पांच गुणस्थान पामे के.
अप्रत्याख्यानी क्रोधथी प्रत्याख्यानी क्रोध नरम होय छे. एने कोइ जीव उपर द्वेष थयो होय तो पण चोमासी प्रतिक्रमण करती वखत सर्व जीवने खमावे छे; एटले पछी कोइ जीव उपर द्वेष रहेतो नथी. रेतीमां लीटी करी होय ते जेम थोडा कालमां मली जाय तेम ए क्रोध थोडा कालमां शांत थाय छे. प्रत्याख्यानी मान लाकडाना थांभला जेवुं होय छे. लाकडानो स्तंभ दांतना स्तंभ करतां थोडी महेनते नमी जाय छे, तेम ए मान पण थोडा वखतमां शांत थइ जाय छे. प्रत्याख्यानी माया गायना मूत्रना वांक जेवी होय छे. चालतां चालतां मूतरती गायथी जे वांक पड्यो होय ते थोडा वखतमां मटी जाय छे; तेम श्रा मायावालो पुरुष थोडा वखतमां सरलता पकडे छे. आकरुं कपट तेनाथी यतुं नथी. अप्रत्याख्यानी करतां सरल होय छे. प्रत्याख्यानी लोभ गाडाना कीलना डाघ सरखो छे. नगरनी खालना कादव करतां आ कीलनो डाघ थोडी महेनते नाश पामे छे. कारण के खालनो कादव घणा दिवस कोही जवाथी वधारे चीकाश