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अन्यमंतनां शास्त्र जोशो तो तमने ज जणाशे. माटे अवकाश मेलवी निरंतर ज्ञानाभ्यास करवो. ज्ञानाभ्यासथी जीवने कर्मनां आवरण खसतां जाय छे अने बुद्धि निर्मल थती जाय छे.
५२ प्रश्नः-जैनशास्त्रमा केटला प्रकारनां कर्म कह्यां छे अने ते कर्म खपी जवाथी शुं शुं शुद्धता थाय छे ? ।
उत्तरः-जैनशास्त्रमा आठ प्रकारनां कर्म कह्यां छे. (१) ज्ञानावरणीय कर्म, तेनी पांच प्रकृति छे. (२) दर्शनावरणीय कर्म, तेनी नव प्रकृति छे. (३) मोहनीय कर्म, तेनी अहावीश प्रकृति छे. (४) वेदनीय कर्म, तेनी बे प्रकृति छे. (५) नाम कर्म, तेनी एकसो त्रण प्रकृति छे. (६) गोत्रकर्म, तेनी बे प्रकृति छे. (७) आयुकर्म, तेनी चार प्रकृति छे. (८) अंतराय कर्म, तेनी पांच प्रकृति छ. ए रीते आठ कर्म छे. तेनी उत्तर प्रकृति एकसो अठावन कही छे. वली अकेक प्रकृति पण घणा प्रकारनी छे.
प्रथम ज्ञानावरणीय कर्मनुं स्वरूप आ प्रमाणे-ज्ञान पांच प्रकारनां छे. तेमा प्रथम मतिज्ञान. मतिए करी जाणवू ते आत्मानो उपयोग, पांच इंद्रियो अने मन एना संयोगे ज्ञान थाय ते मतिज्ञान. मतिज्ञानथी पाछला भवनुं पण ज्ञान थाय छे, परंतु आवरण लागवाथी बधा जीवने थतुं नथी. मतिज्ञाननी जेटली शक्ति उघाडी छे तेटलुं ज्ञान थइ शके छे; केम के केटलाएक माणस घणा लांबा विचार करी शके छे. केटलाएक अनुमानथी पण विशेष विचार करी शके छे, केटलाएक ते करी शकता नथी. तेनुं कारण एटलुं ज छे के जेने कर्म थोडां छे तेने बुद्धि विशेष छे. जेने कर्म वधारे छे तेनी बुद्धी ओछी चाले छे. वली बीजी रीतना पण आव. रण होय छे. जेम के केटलाएक अनेक जातनी लीपीओ भण्या होय छे, तर्क, वितर्क पण घणा करी शके छे, याददास्त पण धणी होय छे तेथी जे काइ वांचे छे ते याद रहे छ; भणq होय ते थोडा वखतमां भणी जाय छे. परंतु ते बुद्धि फक्त संसारना काममां वापरे छ; धर्ममार्गमां वापरवानां