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________________ ( ४१ ) आवरण खुल्या नथी तेथी, धर्मनो खरो अभ्यास करता नथी अने निर्पेक्षपात संबंधथी जोइ शकता नथी. केटलाएकने एवां आवरण होय छे के धर्मनुं ज्ञान मेलववामां सारी बुद्धि छे तेथी शास्त्र जोइ शास्त्रनी सुंदर वातनो न्यायबुद्धिर्थी निश्चय करे छे, पछी सार रूप शास्त्रनी वात ग्रहण करे छे अने तत्व विचारणा करे छे. केटलाएकने एवां आवरण होय छे के संसारमा बुद्धि नथी चालती तेम धर्ममां पण नथी चालती. बन्ने रीते बुद्धिनी खामी होय छे. केटलाएकने सर्व प्रकारे बुद्धि खुले छे अने बधा कमिमां 'न्यायनीज बुद्धि प्राप्त थाय छे. खरी वातने ज खरी जाणे छे. घणा प्रकारे मतिज्ञाननां आवरण नाश थयां होय त्यारे ज एवी बुद्धि प्राप्त थाय छे. केटलाएकने बुद्धि थोडी होय पण सत्यवादी पुरुषनो संग करवानी बुद्धि जागी छे तेथी थोडी बुद्धिथी पण तेमना कह्या प्रमाणे चाली पोताना आत्मानुं काम करी शके छे, कोइक जीव कर्मना आवरण नाजोगे मूगा, कोइकांधला अने कोइक व्हेरा पण थाय छे एटले ज्ञान वधारी शकता नथी. वली कोई भूगा होय, कोइ बोबडा होय पण काननां आवरण खुल्लां छे तेथी धर्म सांभली पोताना आत्मानुं काम करे छे पण परने उपकार करी शकता नथी. व्हेरा होय छे पण आंखोना जोरथी पोतानुं केटलुंएक काम करी शके छे. आंधला होय छे पण कानना जोरथी सांभली तेनो विचार करी पोतानुं काम करी शके छे. एवी रीते मतिज्ञानावरणी कर्मे करीने श्रात्मानुं ज्ञान श्रावरचं होय छे तेने मतिज्ञानावरणी कर्म कहीए. श्रुतज्ञान तो शास्त्र तथा अक्षरनुं नाम छे. श्री ज्ञान मतिज्ञाननी साथे ज रहे छे. ज्यां मेतिज्ञान त्यां श्रुतज्ञान अने ज्यां श्रुतज्ञान त्यां मतिज्ञान समजवु. बन्ने ज्ञान साथै ज रहे छे. बन्ने कर्मनां आवरण पण साथे ज 'रहे छे; खुलें छे ते पण साधे ज खुले छे. मतिथी अंतरंगमां विचार थाय मां जे अक्षर के ते श्रुतज्ञान छे. वर्त्तमान कालमां विशेष रीते तो मति तथा श्रुतज्ञान छे. तेमां जे जीवने समकित थयुं छे तेने मति श्रुत
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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