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(३९) गति मले छे. तेथी ओछु पुन्य बांध्यु होय तो मनुष्य गति मले छे. पाप बांध्यु होय तो एकेंद्रि, बेरेंद्रि, तेरेंद्रि, चौरेंद्रि, तिर्यंचपंचेंद्रि प्रमुख थाय छे. बली वधारे पाप बांध्यु होय तो नरके जाय छे. एवी रीते जे गतिमा रहिने जेवां कृत्य कयी होय तेवां बीजी गतिमां फल मले छे. ईश्वर कमना संयोग विना एकने माणस अने एकने जनावर केम बनावे ? बधा सरखा बनाववा जोइए. ते तो देखातुं नथी, वास्ते आवं मानवू अमारा विचार प्रमाणे तो व्याजबी लागतुं नथी. जे सर्वज्ञ चार गतिनुं रूप बतावे छे ते ज व्याजबी लागे छे. सर्वज्ञना कहेवामां कांइ फेरफार होय नहीं, पण जेने सर्वज्ञपणुं प्राप्त थयुं न होय तेने सर्वज्ञ मानवाथी फारफेर आवे छे. तेनो काइ उपाय नथी. परंतु अर्थि जीवे तो सर्वज्ञनी ओ. लखाण करवानो उद्यम जरूर करवो जोइए. कारणके बधी वात प्रत्यक्ष नथी. जे जे अरूपी पदार्थ छे तेनुं तथा गये काले थइ गयेली बाबतर्नु अने आवते काले थवानी बाबतनुं अनुमान थोड़े थइ शके. विशेष तो तेमना कहेवा प्रमाणे मानवु पडे. ते सारु सर्वज्ञनी वर्तणुक, तेमनो उपदेश, ज्ञान तथा तेमनां शास्त्र ए चारे वस्तुनी तपास करवी. पछी जे शास्त्रमा उत्तम ज्ञान होय तेने प्रमाण करवू. उंचा ज्ञानवालानी प्रवृत्ति पण सारी होय ज अने ते प्रमाणे चालवाथी आपणुं पण कार्य सरी शके. ५१ प्रश्नः-जैनशास्त्रमा शुं शुं विशेष छे ?
उत्तरः जैनधर्मना सर्वज्ञे स्वर्गना स्वरूपनुं वर्णन जेटलुं बताव्युं छे तेटलु कोइ अन्यशास्त्रमा बतान्यु नथी. नरकना भेद, त्यांनी वर्चनानुं स्वरूप, तिर्यंचनुं स्वरूप तथा मनुष्यनुं स्वरूप पण जे जे रीते वर्णव्यु छ तेवी सूक्ष्म रीते कोइ शास्त्रमा वर्णव्यु नथी. ए स्वरूप आ ठेकाणे लखतां विस्तार थइ जाय. जीवाभिगम, पन्नवणा, समवायांग, सूयगडांग विगेरे सूत्रोमा घणा विस्तार सहित तेनुं स्वरूप आप्युं छे. तिर्योलोक जेमा आपणे रहीए छीए तेमां समुद्रनी हद कोइ देखे तेटली कहे छे. आगल शंहशे? ते विचारी शकता नथी. कंइ पण होवू तो जोइए ज, पण ते चर्मचक्षुथी देखी