________________ / 258) तेमनां चरित्र भावी कामने शांत करे, पछी नवकार मंत्र समरतो सुए, ते पण स्त्रीनी जोडे नहीं. आ नियम गंठसी अथवा मुट्ठसी करीए छीए तेम एक नवकार गणी न पाले, त्यां सूधी अभिग्रह छे. आ विधि बहु सारी लागे छे. मरण थाय तो आराधक थइ जाय. माटे रोज करवा योग्य छे, मांदगाने अवसरे तो विशेष करवा योग्य छे. ॥दोहा॥ परम देव परमातमा, बुद्धि आत्मगुरु राय // एह परमपद सेवतां, अनुपानंद थवाय // 1 // इति श्रीभरुच नगर निवासी शेठ अनुपचंद मलुकचंद संग्रहित श्री प्रश्नोत्तर रत्नचिंतामणि समाप्त. दर रविवारे प्रसिद्ध थतुं एकलुं अठवाडिक पत्र-वार्षिक लवाजम टपाल साथै रुपिया त्रण, पत्र व्यहवार-मालीक-जैन. 1. 11 अमदावाद