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(२८७ ) अर्थ:-तेम ज क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, ( करह), अभ्याख्यान, पैशुन्य, रति, अरति, पर परिवाद, माया मृषावाद अने मिथ्यात्वशल्य ए पापस्थानकने हुं वर्जु छु.॥ ९॥ १० ॥ आ प्रमाणे पापस्थानने वर्जिने पछी वोशिराववा माटे श्रा
प्रमाणे गाथा कहेजइ मे हुज पमानो, इमस्स देहस्स इमाइ रयणीए ॥
आहार-मुवहि देह, सव्वं तिविहेणं वोसरियं ॥ ११ ॥ अर्थः-जो आ रात्रीने विषे म्हारं मरण थाय तो चार प्रकारनो आहार, उपधि ते धन, धान्य, घर, राच रचीलां अने कुटुंब तेमज आ देह ए सर्वने मन वचन कायाए करी वोशिरावं छु. ॥११॥ आ प्रमाणे करी नवकार पूर्वक त्रण गाथाओ कही छे, तेनुं
नाम नथी, पण अनुमानथी नीचेनी संभवे छेएगोहं नत्यि मे कोइ, नाहमन्नस्स कस्सइ । एवं अदीण मणसो, अप्पाण मणुसासइ ॥ १२ ॥ एगो मे सासओ अप्पा, नाण देसण संजुश्रो॥ सेसा मे बाहिरा भावा, सव्व संजोग लख्खणा ॥ १३ ॥ संजोग मूला जीवेण, पत्ता दुख्ख परंपरा तम्हा संजोग संबंधं, सब्वे तिविहेण वोसरियं ॥ १४ ॥
अर्थ:-हुँ एक छु, म्हारु कोइ नथी, तेम हुँ पण कोइनो नथी, ए प्रकारे अदीन मनथी आत्माने शीखामण आपे. ॥१२॥ ज्ञान दर्शन युक्त एवो एक म्हारो आत्मा शाश्वत छे, बाकीना (तन धन अने कुं. टुंबादिक ) सर्व बाह्यभावो संयोग रूप लक्षणवाला छे ॥ १३ ॥ संयोग रूप मूलथी जीव दुःखनी परंपराने पाम्यो छे. ते कारण माटे सर्व संयोग संबंधने मन वचन कायाना योगथी वोशिरावं कुं॥ १४ ॥ ___ आ प्रमाणे भावीने जे पुरुष अथवा जे स्त्रीए शील पाल्यां छे.