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(२१२) जेटली विभाविक वर्तणुक करशे तेटली वर्त्तना कंइ जिनमंदिरमा जइ करवानो नथी. प्रभुना गुण विगेरे गाशे तो तेथी विभावमांथी चित्त खसवान साधन छे ने ज्यां सुधी पूर्ण विशुद्धि थइ नथी, त्यां सुधी जी. वने चढवानो रस्तो एज छे. तेथी वीतरागे बताव्यो छे ते छतां आवी पोतानी कल्पनाथी एम कल्पे जे आ पण राग बंधन छे ते कहेवा रूप छे. वस्तुपणे तो विभाव उपरथी राग खस्यो नथी तेथी आम बतावी प्रभुना गुण गावा नथी, जेने आत्मानुं कार्य करवू छे, तेने तो जेटली विशुद्धि थाय, ते प्रमाणे करवा प्रभुजीए बताव्युं छे तेमज करशे.
आगल घणां दृष्टांतो आप्यां छे जेम के कोइ माणसे विष खाधुं छे. हवे ते माणसने खबर पडी जे सहारा खावामां विष आव्यु छे ते टालवा सारु कंइक औषध खाउं, पछी विष टालवानां औषधो खावाथी निर्विष थयो. एक माणस कहे छे जे औषध तो कडवू लागे छे ए कंइ खावानो पदार्थ नथी तेथी खाउं नहि. तो ते माणसने विष उतरे नहि. तेमज प्रभुभक्ति विगरे छे ते विप उतारवानां औषध रूप छे. विष उतर्या पछी औषधनुं काम नथी तेमज राग द्वेष रहित थाय तेने शुभ रामनी जरूर नथी, पण संसारना राग उतर्या नथी ने शुभ रागने बंधन जाणे ए तो प्रेम विषवालो कडवू जाणी औषध खातो ननी तेथी ते जेम निर्विष थतो नथी, ते जे अशुभ राग छोडी शुभ राग आदरतो नथी, तेचे आत्मानी विशुद्धि थवानी नथी. वली अहंकारादिक विषे कहे, छे ते अहंकार कंइ शुभ करणीथी आवता नथी. पण एनी परिणती हजु जडभावमाथी खशी नथी ते करावे छे, हजु ज्ञान थयुं नथी तेथी ते पोते अहंकार करे छे के असे प्रभुनी भक्ति करीए छीए, व्रत करीए छीए, हजारो रुपैया खरच करीए छीए, असे मोटा मोटां शासननां काम करीए छीए. अमारा जेवा कोण छे ? आ दशाओ थाय छे ते महा अज्ञानदशानुं जोर छे तेथी ते विषे तो जेमना समजवामां आव्यु छ जे अहो! महारा आत्मानी स्वभावदशा तो जाणवू देखq छे' जड