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(१९३) गट थाय छे ने स्वाभाविक ध्यान थाय छे माटे ए सर्व थवा, कारण श्रुतज्ञान छे ने ते श्रुतज्ञान ज्ञानावर्णी कर्मना क्षयोपशमथी थाय छे, ज्ञानावर्णी कर्मनो क्षयोपशम ज्ञान भणवाथी, ज्ञान भणाववाथी, ज्ञाननो पाठ करवाथी, ज्ञानवाननो तथा ज्ञान जे पुस्तको, वा ज्ञाननां उपगरणो तेनो विनय करवाथी, वा पुस्तको लखाववाथी तथा विद्याशाळाओ काढवी ने श्रावकोने भणाववा, तन मन अने धन ए त्रण प्रकारे शक्ति होय ते प्रमाणे ज्ञाननी पोताने तथा परने वृद्धि थाय एवी प्रवर्चना करवी. तेथी ज्ञानावर्णी कर्मनो क्षयोपशम थाय ने ज्ञान प्रगट थाय, जेने धननी शक्ति होय ते धन ज्ञानना काममां वापरे. जेने शरीरनी शक्ति होय ते शरीरथी ज्ञाननी संभाल राखे. जेटली जेटली बने एटली शरीरथी सेवा भक्ति करे. जे जे ज्ञान संबंधीना कामनी महेनत करवानी होय ते करे, वली मननी शक्तिवाला एटले भणेला होय ते बीजाओने भणावे, दृष्टांत युक्तिये करी जेम समजे तेम समजाववानो उद्यम करे. पोतानुं काम छोडीने पण परने ज्ञाननो लाभ थतो होय ते उद्यम करे. पण स्वार्थज कया करे नहि. आ लक्षणो ज्ञान निकट थवानां छे. माटे नजीकमां ज्ञान थवावाला तो आ रीते वर्ते एटले ज्ञानना काममां जरूर पैसा वापरे; पण जेने ज्ञान प्रगट थर्बु दूर छे ते जीवो तो विचित्र काम करे छे. केटलाएकने में समजाव्या छे तेमणे मने जवाब दीघो के शास्त्र तो पणांज के तेने आ दुनियामां वांचनार कोण छे १ घणांए पुस्तको सडी जाय छे, वली कोइ कहे छे जे श्रमने कंइ भणतां श्रावडतुं नथी एटले पुस्तकने शुं करीए ? आवा अनेक प्रकारना जवाब अज्ञानपणे आपे छे. वली शासनमा केटाएक कारभारी होय छे तेमना ताबामां पैसा होय छे ते पैसा एकठा करी वधायें जाय छे, पण ते पैसामांथी ज्ञानना काममा खरचता नथी. व्याज उपजावी पुंजी वधायें जाय छे. कोइ ज्ञानमां खरचवानी प्रेरणा करे थे, तो पण पोताने ज्ञानवर्णी कर्मनो उदय छे तेना प्रभावे उसाहे पारका पैसा पण ज्ञानमा खरचता नथी ने वगर कारणे जीब ज्ञा