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नावर्णी कर्म बांधे छे. ए जीव उपर पण ज्ञानवाने तो करुणा लाववी, पण द्वेष लाववो नहि. कारण जे ए जीव शुं करे ! कर्मराजा मार्ग आपे नहि ने आ भवमां तो समकित विना बुद्धिवान गणाया छे, पण एनी भवितव्यता एवीज छ के आवते भवे ज्ञान विशेष अवराइ जवान छ तेथी ए बिचारानी बुद्धि एवी थाय छे. वली ज्ञानवंतोए एवाने समजावंवा जोइए. पण प्रायः केटलाएक कारभारीओ धनवान होय तेथी तेमने क. हेवा जइए तो उलटो वधारे द्वेष प्राप्त थाय एटले ज्ञानवानने पण मुंगा बेसवू पडे छे, हवे पैसाना आपनार माणस तो ज्ञानमा खरचवा आपे छे ते छतां ते पैसा न खरचवाथी तेमनो विश्वास उठी जाय छे. वली एवी खबरो पडवाथी जे पैसाना खरचनार होय छे ते पण ज्ञानना काममा खरचता नथी ने कहे छे जे ज्ञानना पैसा अमे श्रापीए ते खोरंजे पडे छे. आम विचार लइ ज्ञानना काममा पैसा खरचता बंध थइ जाय छे. आ. वां अनेक कारणो मलबाथी ज्ञानमा पैसा खरचवा बंध थइ गया छे पण एमां इलाज नथी, पण आत्मार्थीने तो सात क्षेत्र छे तेमां छए क्षेत्रने
ओलखावनार ज्ञान छे माटे ज्ञान जेवू कोइ पण क्षेत्र नथी. मरण वखते पण जीवो लाखो रुपीमा मान प्रतिष्ठाने अर्थे शुभ काममां वापरे छे पण ज्ञानमां वापरता नथी. आत्मार्थीए तेम करवूनहि. आत्मार्थीए तो वधारे भाग एमां वापरवो. कारण जे बीजा क्षेत्रमा केटलाएक श्रात्मार्थे केटलाएक मान सारु पण खरचनार छे. तेथी ते कामो तो चाल्या करे के तैमां अडचण नथी. ने आ ज्ञानक्षेत्रमा तो मोटी अडचण छे के ज्ञानना जूना भंडारो छे तेमां केटलाएक भंडारो एवा शेठीया तथा साधुओ पासे छे के कोइ वांचवा मागे तो एक पार्नु पण आपता नथी ने पुस्तक खवाइ जाय छे. हवे ए पुस्तकथी तो कंइ उपकार 'थनार नहि. वली केटलाएक भाग्यशालीना हाथमा छे ते पुस्तक आत्मार्थिना उपयोगमा आवे छे. पण सर्व वस्तुनी कालस्थिति छ माटे एने पण वधारे काल थवाथी नाश थवानो संभव छे. त्यारे जो नवा नवां लखातां जता होय