________________
तेना उपर मन जतुं नथी माटे न्यारुं छे.आवा विचार करी आत्मस्वरूप अनुभव गम्य छे. एटले सहजे तेनी बाह्यदशा उपर चित्त प्रवृत्ति जती नथी, मात्र पोताना स्वरूपमा मन थाय छे. सुख दुःख समान माने छे. एनी ए वस्तु मानतो ज नथी. सुख दुःख भोगववानी तो चित्तवृत्ति होय ज. केम के पोताना स्वभामा ज मग्न थइ रह्या छे. विषयनी तो स्वप्नमा पण इच्छा नथी. ए कर्म संयोग आ शरीरमा रह्यो छे तेने आधारे -जोइये त निरवद्य वस्तु अवसरे मली तो पण आनंद छे. ते नहि मली तो पण आनंद छे. जेमके ऋषभदेवस्वामीने वर्ष दिवस सुधी शुद्धमान श्राहार न मल्यो तो पण पोताने विकल्प नथी ने समभावमा वा तेथी ते पण गणायो, तेम ज उदासीन वृत्तिवाला थाय छे ते तो पोताना स्वरूपने पोतानी वस्तु माने . तेमां जेटली. कसर छे तेटली तेटली पुद्गलभावनी प्रवृत्ति करे छे, पण तेमां कोइ पण परभावनी इच्छा नथी, ने जो इच्छा थाय छे, त्यांथी वैराग्य करी पाछु मन वाले छे एम करतां वधारे विशुद्ध थाय छे त्यारे ते वस्तु उपरथी उदासिनता भाव थाय छे. वली पोताने केटली हद प्राप्त थइ छे ते जोवा सारु प्रभुजीए साते नये स्वरुप बताव्यु छ, ने - सात नयना ज्ञानथी बाह्यप्रवृत्तिनुं अंतरंग वृत्तिनुं ज्ञान थाय छे, तेथी पोतार्नु स्वरूप विचारे छे, तेमां पण पोतानुं स्वरूप भासन थाय छे.ते अनुजोगद्वार सूत्रनी छापेली प्रतमां पाने ६२८-५२८-४१ मे छे त्यांथी जोइ लेवु. इहां सहज तेनां नाम लखु छु. सात नय ते नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढनय, एवंभूतनय, ए.सात नय छे. तेमां एक एक नयनो विषय विशुद्ध छे. नैगमथी संग्रह, संग्रहथी व्यवहार, व्यवहारथी रुजुसूत्र, रुजुसूत्रथी शब्द, शब्दथी समभीरूढ तेथी एवंभूतनय छे ते पूर्ण वरतुने माननार छे. तेम आत्मानी प्रवृत्ति सं. . पूर्ण गुण प्रगट थाय त्यारे एवंभूतनय धर्म माने, त्यां सुधी जे जे पोतानी कसर छे तेथी मुक्त थइ आत्मानुं शुद्ध स्वरूप प्राप्त करवानुं भावे. जेम जेम अंतरंगमा स्थिरता करवा अभ्यास करे. तेम तेम क्षयोपशमभाव वृ.