________________
( ११७ )
भव संबंधि मित्र स्नेही अथवा सहचारी अथवा संगतिक जेनाथी घणो परिचय छे, ते संगाथे मनुप्यना भवमां हतां तेवारे मांहो मांहे एवो संकेत कीधो हतो, या देवतामां संकेत कीघो हतो जे देवता मांहेथी प्रथम यवी मनुष्यमां जाय त्यारे तेने प्रतिबोधवों ए कारणथी आवे.
1
आ मुजब ठाणांगजीमां अधिकार छे, वास्ते देवता न आवे एम ए एकांत समजवुं नहि. वली वीरस्वामीना निर्वाण थया पछी घणा आचार्य महाराजनी सेवामां देवता श्राव्या छे. देवतानी सहाय्यथी सीमंधरस्वामी पासे पूछावी मंगाव्युं छे, पण अत्यंत गुणवाननी सेवामां आवे छेल्ला हीरविजय सूरि महाराज सुधीना आचार्योंए देवनी सहाय्यताथी शासननी घणी प्रभावना करी छे. वली आनंदविमलसूरीना वखतमां श्रावके श्राराधन करयुं छे नेते देवताने पूछधुं छे जे हाल जुगप्रधान कोण छे ? त्यारे युगप्रधान ओलखवानां लक्षण कह्यां छे. तेथी श्रावके तजवीजं करी आनंदविमलसूरिने जुगप्रधान निर्धार करया छे, ए अधिकार हीरविजयसूरीना रासमां छे. माटे न आवे ते कंइ निर्धार नहि, मने पण मुनिसुंत्रतस्वामीना प्रभावथी कंइक अनुभव थयो छे. यली व्यवहार सूत्रनी भाध्यमां कह्युं छे जे, कोइक मुनिने गुरु महारांजनो योग न होय ने प्रायचित्त लेवुं होय तो अट्टम करी भरुचमां मुनिसुव्रत स्वामीनुं आराधन करवुं. तथा मुनीसुव्रतस्वामीना अधिष्ठायक आवीने प्रायश्चित्त आपशे. कारण जे मुनिसुव्रतस्वार्माए तथा गणधरे बहु प्रायश्चित्तं आप्यां छे. ते तेणे सांभल्यां छे. ने तेथी ते श्रापशे. कदापि ते देवता च्यवी गया हशे तो बीजा अधिष्ठायक सीमंधरस्वामीने पूछीने कहेशे. एथी पण समजाय छे के देवता आवे D. ए अधिकार व्यवहार सूत्रनी भाप्यनी टीकानी प्रत म्हारी पासे छे तेमां पाने २०६ मे बीजी पूंठीमा पहेला उद्देशानी समाप्तिना भागमां. छे.
६१ प्रश्नः - पांच अंग जे सूत्र, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णी, टीका ए सर्वे तुल्य मानद्वामां आवे छे ने केटलाएक नथी मानता. माटे व्याजबी शुं ? उत्तरः- आ पांचे अंग तुल्य मानवां. कारण जे सूत्रमां दश पूर्वधरनां