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(११६ ) 'परदेशी राजाना विवादमा पागल कह्यां छे वास्ते नहि ज आवे के केम? '' उत्तरः-चार कारणे देवता आवे. ए अधिकार ठाणांग सूत्रमा चोथे ठाणे छापेली प्रतमां पाना २८६ मे पहेली पुंठीथी संबंध चाल्यो छे. चार स्थानके हमणांनो उपन्यो देवता देवलोकमा रह्यो वांछे, ते मनुष्य लोकमा आववानें समर्थ थाय ते कहे छे.
तुरतनो उपन्यो देवता देवलोकमां दिव्य काम भोगववाने विषे मूच्छित न थयो. अनित्य जाणी यावत् अत्यंत आसक्त मन नथी तेने एवं मनमा आवे जे म्हारे मनुष्यभव संबंधी आचार्य प्रतिबोधक. अथवा उपाध्याय सूत्रदाता, प्रवर्तक जे साधु जनने' आचारमा प्रवावे, अथवा स्थविर अथवा गणी गच्छना स्वामी, गणधर गच्छना धरनार अथवा गणावच्छेदक गच्छनी सार करे ते जेना प्रभावथी आ प्रत्यक्ष देवसंपत्ति देवतार्नु शरीर तथा कांति पामी. जन्मांतरमा उपार्जि ते भोग सन्मुख आवी. ते माटे हुं जउं. ते भगवानने वांदुं यावत् तेनी सेवा करूं. ए प्रथम कारण, * २ हर्मणां तुरत उपन्यो देवलोकने विषे देवता. यावत् मूञ्छित विषयमां अत्यंत आसक्त नथी तेने मनमां एवं आवे जे मनुष्यना भवमां ज्ञानी श्रुतज्ञानादिकं साहित छे अथवा म्होटा तपस्वी छे अथवा अति दुष्कर करणीना करनार छे, परिसहादि सहनार छे. ते माटे हुँ जलं. ते भगवंत ज्ञानी अथवा तपस्वी अंथवा दुष्कर करणीना करनार छे. तेने वांदुं यावत् तेनी सेवाभक्ति करूं. ए आववानुं बीजं कारण... '३ हमणों तुरत देवलोकमां उपन्यो देवता विषय सुखने विषे अत्यंत आसक्त नथी. ते देवताना मनमां एवं आवे जे म्हारे मनुष्य भव संबंधी माता पिता यावत् भार्या भाई. बहेन पुत्र पुत्री छे. ते माटे हुं जउं, तेनी पासें जइने प्रगट थउं. ते सर्व देखे. म्हारी दिव्य देवंतानी विमानादिकनी संपत्ति रत्न प्रमुखनी दिव्य देवतानी कांति शरीरनी जे पामी छे, भोगावस्थाये सन्मुख थइ छ, ए आववानुं त्रीजुं कारण. . • “६ वली 'नयो उपन्यो देवतो तेना मनसा एवं आवे जे म्हारे मनुष्य