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(११८) वचन तो सूत्र तुल्य कयां छे. हवे भद्रबाहुस्खामी चौदपूर्वधर थया, तेमणे नियुक्ति रची . तो एमां फेरफार भाववो ते अज्ञानता छे. वली समवायांग सूत्रमा एवो पाठ पाने २२८ मे छापेली प्रतमा छे जे-कप्पस्स समोसरणं णेयं एनो अर्थ एवो करेलो छ जे कल्पनी भाष्यथी समवसर. णनो अधिकार जाणवो. तथा छापेली भगवतीजीमां पाने ९१८ मां कडूं छे, ते सिद्धगंडिआथी जाणवू. इहां एवी शंका थशे जे समवायांगजी तो गणधर महाराजे गुंध्यु, ने भाष्य तो पछी रच्यु. तथा सिद्भगंडिया पछी रचाइ तो एमां अधिकार क्याथी आव्यो ? ते विषे समजवु जे, जे वखत देवगिणीक्षमाश्रमणजीए शास्त्र लख्यां, ते वखते वधारे लखाण न वधी जाय ते सारु एक बीजा शास्त्रनी भलामण करी. जेमके भगवतीजीमां पन्नधणाजीनी तथा जीवाभिगमजी विगैरेनी भलामण छे. हवे पन्नवणाजी शामाचार्य महाराजे रव्युं छे तो ए भलामण भगवतीजीमां क्याथी आवे? पण लखती वखत एक वात बहु ठेकाणे लखवी न पडे तेथी उपांग पयन्ना भाष्यनी ए भलामणो करी संकोच करयो. ए उपरथी विचारवान छे, जे देवगिणीक्षमाश्रमणजी महाराजने जे ज्ञान हतुं तेमां सूत्र नियुः क्ति भाग्य विगेरे यादिमां हतुं ते लल्यु. त्यारे जो सूत्रमा ने नियुक्ति भाष्यमां शंका होत तो केम लखत ? तेमणे तो आपणा उपर परम उपकारबुद्धि लावी सूत्र विगेरे लखाव्या. माटे एमां कंइ पण फेरफार मानवो 'योग्य नथी. वली प्रार्यरक्षितसूरी महाराजे सूत्रनो संक्षेप करयो. ते अधिकार हरिभद्रसूरि महाराजनी रचेली आवश्यकनी टीकामां छे. ते पण माणसने शंका थशे के फेरफार करा, पण आर्यरक्षितसूरीना पाटे दुर्बली. पुष्प थया. तेमना वखते गोष्ठामाहिल थया. ते वखते देवता पासे पूछाव्यु जे आर्यदुर्बलीपुष्प कहे छे ते खरं के गोष्ठामाहिल कहे छे ते खरं ? सीमंधरस्वामी महाराजे देवताने कह्यं जे आर्यदुर्बलीपुष्प कहे छे ते खरं छे, ने गोष्ठामाहिल निन्वह छे. ए अधिकार उत्तराध्ययननी दीकामा छे. एपी सिद थाय छे के आर्यरक्षितसूरिनी पाटे श्वार्यदुर्बलीपुष्प थ्या के.