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स्थाने वत.
जे आत्माना
अघाति कम
(१७) णस्थाने वर्ते. ए गुणस्थाननां चार अघाति कर्म रह्यां छे. अधाति कहे वानी मतलब ए छे जे आत्माना गुणने ए कर्म घात करतां नथी, तेम गुण प्रगट करवामां अटकावतां नथी तेथी अघाति कर्म कहीए.
चौदमुं अयोगी गुणस्थान. ए गुणस्थान आयुष्यनो अ-इ-उ-रु-लए पांच अक्षर बोलीए एटलो काल बाकी होय त्यारे पामे छे. ए गुणस्थानमां योग जे मन वचन कायाना तेनो रोध थाय छे, ने चारे कर्म नाश थइ जाय छे, ने सर्व कर्मथी रहिन थाय छे. आ शरीरनो साग थाय छे. एक समये सिद्धमा बिराजमान थाय छे. त्यां सदाकाल अवस्थित रहे छे. फरी संसारमा आवq नथी. कारण जे संसारमा रोलावानां कारण कर्म छे, ते नाश पामे छे. एटले शाथी संसारमा रोलाय ? संपूर्ण आत्मिकसुख प्रगट थयुं छे. एवा पूर्ण सुखने पामे छे. इहां कोइ कहेशे जे लोकने अंते जाय छे, ते अलोकमां केम जता नथी ? तेनुं कारण जे धर्मास्तिकाय अलोकमां नथी. लोकना अंत सुधी धर्मास्तिकाय छे. जीव अने पुद्गल धर्मास्तिकायनी सहाय्य विना चाली शकता नथी, तेथी आगल जता नथी. आत्माने इहाथी त्यां सुधी जवानुं शुं कारण ? तेनुं जाणवू जे उं. चो जवानो ज स्वभाव छे तेथी जाय छे.
श्रा मुजबनो चौद गुणस्थान रूप धर्म छे. तेमांथी जैटलो जेटलो जीव धर्म करे ते प्रमाणे शुद्ध थाय.
५५ प्रश्नः-आ भुजबनो धर्म जैनवाला ज करी शके के बीजा कोइ करी शके ?
उत्तरः-विशेषे करीने जैनवाला ज करी शके. कारण जे जेने वस्तु धर्मनुं ज्ञान नथी, त्यां सुधी वस्तुने वस्तुपणे मानवू बने नहि. तेथी स्वभाव विभाव जाणे नहि, ने विपरीत जाणवाथी शी रीते मुक्ति थाय ? ने कोइ जीवने स्वभाविक सहजे वस्तुधर्मनुं ज्ञान थाय, तेथी पोताना स्व. भावमा रही परभावनो त्याग करे तो गुणस्थानमय धर्म पामे. जेम कोइ माणसने रस्तामा जतां जमीनमां पग गरकी जाय छ, ने द्रव्य मले छे