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गुणस्थानमा अभेद ज्ञान छे. एकत्त्ववितर्क अप्रविचार नामा ध्यान अभेद ज्ञान छे, तेनो बीजो पायो वर्ते छे. तेथी अति विशुद्ध भाव थाय छे. तेथी ए गुणस्थानना अंतमा ज्ञानावणि कर्मनी पांचे प्रकृति, दर्शनावर्णि कर्मनी छ प्रकृति रही हती ते, तथा अंतरायकर्मनी पांचे प्रकृतिनो उदय बंध सत्ता सर्व प्रकारे नाश थइ जाय ने तेरमुं गुणस्थान पामे छे.
तेरमुं सयोगी गुणस्थान. ए गुणस्थानमां; केवलज्ञान केवलदर्शन प्रगट थाय छे. लोकालोकना जाण थाय छे. गयो अनंतकाल, ने प्रावतो अनंतकाल छे, तेमां जे जे पदार्थ थइ गया, तथा थवाना छे ते सर्वेनुं ज्ञान छे. कंइ पण वस्तु जाणवाने अजाण नथी. एवं संपूर्ण ज्ञान प्रगट थाय छे, त्यारे तीर्थंकर महाराजनी वैमानिक, ज्योतिषी, भवनपति, व्यंतर ए चारे जातना देवताना इंद्रो भक्ति करवा आवे छे, ने समवसरणनी रचना करे छे. तेमां पहेलो कोट रुपानो, बीजो कोट सोनानो, त्रीजो कोट रबनो. रत्नना कोटनी मांहि प्रभुने बेसवांने रत्नमय सिंहासन छे, ते उपर प्रभु बेसे छे. ते प्रभुनो प्रभाव एवो छे के, चारे दिशाए लोक प्रभुने जुए छे. तेनुं कारण के प्रभुनुं प्रतिबिंब त्रणे दिशाए होय. प्रभुना मस्तक उपर त्रण छत्र अद्धर रहे, वली देवता चामर वीजे. प्रभुनी पूंठे तेजना पुंज रूप भामंडल शोभे. जेनुं तेज सूर्य करतां बारगणुं होय. वली उपर अ. शोकवृक्ष होय, तेनी एवी शीतलता होय के सर्व जीवना शोक संताप नाश पामे. वली आकाशे दुंदुभी वागे. तेमां एवो शब्द थाय जे ए देवने भजो, ए देवने भजो. वली देवता फूलनी वृष्टि करे ते चारे पासे ढींचण प्रमाण फूल होय. एवी रीते देवता रचना करे. त्यां प्रभु बेसीने धर्मदेशना आपे, तेथी घणा जीव प्रतिबोध पामे छे. कारण के केवलज्ञाने करी सर्व वस्तु जाणे छे, तेथी कोइना मनमा शंका थाय तो पण पोते जाणे. तेथी तेने पूछवानी पण जरूर न पडे. भगवान जाणीने सर्वे उत्तर
आपे. तेथी कोइने शंका रहे नहि. एवी रीते ज्यां सुधी आयुष्य पहोचे, 'त्यां सुधी पृथ्वि उपर फरी भव्य जीवोने प्रतिबोध करे. ए रीते तेरमे गु