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छे. अति विशुद्ध अध्यवसाय थया छे. जड चेतननो केवल विभाग करता जाय छे. शुक्लध्याननो पहेलो पायो पृथक्त्ववितर्क सप्रविचार नामे ध्यानमां ध्याय छे.
नवमं अनुवृतिबादर गुणस्थान, ए गुणस्थानमां अतिशय विशुद्ध - ध्यवसाय थाय छे. आठमाना अंतमां हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुगंछा छ प्रकृतिनो अंत थाय छे. आ गुणस्थानमां ए छए प्रकृतिनो उदय नथी. इहां शंका थशे के आठमुं गुणस्थान पाम्या त्यां एनी प्रवृत्ति हती ? ते विषे समजवुं के लोकनी रीतना तो छठ्ठा गुणस्थानथी नीकली गया छे, पण आत्माना गुण स्वभाविक प्रगट थाय छे ते जोड़ने हरख थाय छे. ते रूप हास्य तथा रति छे, तथा अरति परभाव उपर छे. भय पण पोताना भाव चलायमान थाय तेनो छे. शोक पण कर्मथी आत्मा मलीन थयो तेनो छे. दुगंछा पण स्वभाविक पर परिणतीनी छे. आ ए स्वभाविक छे. एनं विस्तारे स्वरूप विचारसारनी टीकामां करेलुं छे. ए नवमा गुणरथानना अंतमां संज्वलना क्रोध, मान, माया, तथा स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद, एनोअंत थाय छे त्यारे दशमुं गुणस्थान पामे छे.
दशसुं सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान. ए गुणस्थानमां सूक्ष्म लोभनो उदय रह्यो छे. ते अति विशुद्ध भावे दशमाना अंतमां ए लोभनो क्षय थाय छे. हवे जे उपशमभावे श्रेणि मांडी होय, ते अगीयारमे गुणस्थाने जाय. कारण जे गुणस्थान उपशमभावनुं छे. क्षायकभावनुं गुणस्थान नथी. तेथी क्षायकभाववाला बारमे गुणस्थाने जाय छे,
अगीयारमुं उपशांतमोह गुणस्थान. ए गुणस्थानमां मोहनी कर्मनो उदय तो नथी होतो, पण सत्ताए रहे छे. तेना जोरथी परिणाम पाछा पडी जाय छे. तेथी ए गुणस्थानकथी चढता नथी पण पडे छे. कदापि आयुष्य आवीर होय ने मरण करे छे, तो सर्वार्थसिद्धि विमानमां जाय छे. त्यांथी मनुष्यमां आवीने मुक्ति जाय छे.
बारमुं क्षीणमोह गुणस्थान. ए गुणस्थानमां वीतरागपद् थाय छे. ए