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________________ ( २ ) आगम अभ्यास का फल टोडरमलजी साहब ने पन नं. २६८ में मिथ्यात्व का नाश होना बताया है-"अव मिथ्यादृष्टि जीवों । को मोक्षमार्ग का उपदेश देकर उनका उपकार करना यही उत्तम उपकार है।" तथा पत्र नं. १६३ में कहा है कि "इस मिथ्यात्व वैरी का अंश भी बुरा है, इसलिए सूक्ष्म मिथ्यात्व भी त्यागने योग्य है।" अब देखना यह है कि शास्त्रों का अध्ययन करने की आचार्यो ने क्या पद्धति वताई है अर्थात् किस पद्धति से शास्त्र अध्ययन करने से इष्ट ध्येय की प्राप्ति हो सकती है। इसके लिए प्रथम यह समझना आवश्यक है कि शास्त्रों के तथा उनके भिन्न-भिन्न विषयों के निरूपण का तात्पर्य क्या है ? शास्त्र तात्पर्य वीतरागता इस विषय में श्रीमत् अमृतचंद्राचार्य ने पंचास्तिकाय ग्रन्थ की गाथा नं. १७२ की टीका में लिखा है कि "अलं विस्तरेण । स्वस्ति साक्षान्मोक्षमार्गसारत्वेन शास्त्रतात्पर्यभूताय वीतरागत्वायेति ।" अर्थ-विस्तार से पूरा पढ़ो। जयवंत रहो वीतरागता कि जो साक्षात् मोक्षमार्ग का सार होने से शास्त्र का तात्पर्य है । मोक्षमार्ग प्रकाशक पन नं. ३०३ में भी कहा है कि-"जिनमत में तो एक रागादि मिटाने का प्रयोजन है, इसलिए कहीं वहुत रागादि छुड़ाकर थोड़े रागादि कराने के प्रयोजन का पोषण किया है, कहीं सर्व रागादि मिटाने के प्रयोजन का पोषण किया है परन्तु नागादि
SR No.010826
Book TitleShastro ke Arth Samazne ki Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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