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( ३० ) ॥वि०॥शाजारण सेठ सुरग द्वादश माँ पायों. केवल भावन भाय ।। अवर अनते भव्य भवदधिसे तिरे भाव सुपसायाविना भाव नहीं लाभ होय क्रय विक्रय में भी किये उपाय।।इम जानी ने भावियुत दानादिक कीजैमन लाया|माधवकहैसकल मुख दायक सुगुरु मगन मुनिकोदरशन्न।विणाइति॥
.॥ लावणी बहरखडी।। मणी मुकरको जो न पिछाने वो कैसा जोहरी प्रधाना। जोशठजड चेतन नहीं जाने ताको किमकहियै मतिमाना।टेजिडमें चेतन भाव विचारें चेतन जड भाव धरें। प्रगट. यही मिथ्यात्व मूढ बो भीम भबोदधि केम तरेंगे। मुक्तगये भगवत तिन्हों का फिर.अहानन