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मुख उचरें । करें विसर्जन पुन प्रभुजीका यह अद्भुत अन्याय करें।।दोऊ बिध अप मान प्रभूका करें कहो कैसे अज्ञानाजोगा ॥१॥ श्रुत इन्द्री जाके नहीं ताको नाद बजाय सुनाव गाना|चक्षु नहीं नाटक. दिख लावें हाथ नचाय तोड कर तान ॥ जाके घाण न ताको मूरख पुप्प चढावें वे परमान।। रसनाजाके मुख में नाहीं ताको क्यों चांटें पकबान ।। फोकट भ्रम भक्ती में हिंसाकरें वो कैसे हैं इन्सान जो०॥२॥जव गोधूम चनाआदिक सव धान्य सचित जिन राज भने ।। प्रगट लिखा है पाठ सूत्र सामायिक मांही वियकमने। दग्ध अन्न अंकुर नहीं देवे देखा है परतक्ष पणे ॥ तोभी शठ हठ