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( २ ) नथा मोक्ष की इच्छा प्राप्त हो सकती है, विद्वान् तथा सामान्य जन नरनारी बालक बालिका सभी इससे लाभ ले सकते हैं। खूबी यह है, कि इसे अकेला भी केवल एक लकड़ी का चौपहल पाँसा डाल कर खेल सकता है, खेलने की रीति [ कुजी ] प्रकाशित हुई है, परन्तु चौसरं अप्रकाशित [प्रेस कापी] तैयार है, तथा आपकी रचित कविताएँ भजन, पूजन, स्तवनादि भी तैयार हैं यदि ये सब प्रकाशित होजांय तो सर्व साधारण मुमुनुजनों को बहुत लाभ पहुंच सकता है जो उदार सज्जन छपाना चाहे वे निम्न लिखित पते पर पत्र-व्यवहार करें।
उक्त वर्णीजी का जीवन समाज सेवा में ही व्यतीत हुआ है, आपका जन्म सन् १८८० में नरसिंहपुर [ मध्य प्रांत ] मेंहुआ और वहीं आपने लौकिक शिक्षा (......) व कुछ अंग्रेजी पाई । धार्मिक ज्ञान तो आपने स्वाध्याय और सत्संग से बढ़ाया है, जो उनकी रचनाओं से प्रकट है पहिले सन् १८६७ से कुछ वर्षों तक सरकारी स्कूल की अध्यापकी की, उस समय स्थानीय जैन बालक बालिकाओं को आप आनरेरी धर्म शिक्षा देते थे, और यथावसर आस पास ग्रामों में मा० पन्नालाल जी के साथ जा २ कर उपदेश भी करते थे, पश्चान् अपने मित्र सिंघई मौजीलाल जी की प्रेरणा से सन् १६८५ में बम्बई दिगम्बर जैन प्रांतिक सभा की ओर से गुजरात प्रांत में उपदेशक रूप से भ्रमण किया। बीच में लगभग १० माह स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस में गृहपति [ सुपरिन्टेन्डेन्टी] का कार्य किया, परन्तु जलवायु की अनुकूलता से वापिस उपदेशकी पर. बम्बई प्रांत : में आगये और गुजरात, बह्वाइ, खानदेश, मध्यप्रांत, महाराष्ट्र