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________________ सत्य. वेळा देवताए सिंहासनयी उछाळी हेठो नांख्यो वन काल परिणाम पामी नरके गयो. आ उपरथी सामान्य मनुष्योए सत्य, तेम ज राजाए न्यायमां अपक्षपात, अने सत्य वन्ने ग्रहण करवा योग्य छ ए मुख्य बोध मळे छे. जे पांच महावृत्त भगवाने प्रणीत काँ छ तेमांनां मथम महावृत्तनी रक्षाने माटे वाकीनां चार वृत्त वाडरूपे छे अने तेमां पण पहेली वाड ते सत्य महारत्त छ. ए सत्यना अनेक भेद सिद्धांतथी श्रुत करवा अवश्यना छे. शिक्षापाठ २४. सत्संग. सत्संग ए सर्व सुखनुं मूळ छे सत्संगनो लाभ मळ्यो के तेना प्रभाववडे वांछित सिद्धि थइ ज पडी छे. गमे तेवा पवित्र थवाने माट सत्संग श्रेष्ठ साधन छे; सत्संगनी एक घडी ने लाभ दे छे ते कुसंगनां एक कोट्याविधि वर्ष पण लाभ न दई गकतां अधोगतिमय महा पापो करावे छे, तेम ज आत्माने मलिन करे छे. सत्संगनो सामान्य अर्थ एटलो छे के, उत्तमनो सहवास. ज्यां सारी हवा नथी आवती त्यां रोगनी वृद्धि थाय छ तेम ज्यां सत्संग नथी त्यां आस्मरोग वधे छे. दुर्गंधयी कंटाळीने जेम नाके वस्त्र आई दइए छीए, तेम कुसंगथी सहवास बंध करवानुं अवश्यतुं
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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