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१४ श्रीमद् राजचंद्र भणीत मोक्षमाला. . शिक्षापाठ ८. सदेवतत्त्व.
त्रणं तत्वो आपणे अवश्य जामवां जोइए. ज्यावशी ते तत्वो संबंधी अहानता होय छे त्यांमुधी आत्वहित नथी. ए अण वचो सदेव, सद्धम अने सद्गुरु छे. आ पाग्या सदेवतुं स्वरूप संक्षेपयां की
चक्रवर्ती राजाधिराज के राजपुत्र छतां जेभो संसारने एकांत अनंत शोकनुं कारणपानीने तेनो त्याग करे चे पूर्ण दया, शांति, क्षमा, निरागीत्व अने आत्मसपदिथी विविध तापनो लय करे छे महा उग्र तपोपध्यानवडे विशोधन करीने बेओ कर्मना समूहने वाळी नांखेछे चंद्र तथा शंखथी भयत उज्ज्वळ एबुं शुक्ल ध्यान जेओने प्राप्त थाय छे सर्व प्रकारनी निद्रानो जेओ क्षय करे छे संसारमा मुख्यता भोगवतां ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय अने अंतरायं ए चार कर्म भाभीभूत करी जेओ केरलबान केवलं . दर्शनसहित स्वस्वरुपथी विहार करे छे जेओ चार अघाति कर्म रथा सुधी याख्यात चारित्ररूप उत्तम शील- सेवन करेछे कर्मग्रीष्पथी अकळाता पामर प्राणीओने परम शांति मळवाजेओ शुदबोधनीजनो निष्कारण करुणाथी मेघधाराजाणीवडे उपदेव करे कोइपण समये किंचित् मात्र पण संसारी वैमरविलासनो स्वमांश पण जेने रयो नयी घनघाति कर्म क्षय कर्या पहेला, पोतानी छमस्थतागणी जेओ भीमलवाणीयी उपदेश करता नयी पांच मकारना अंतराय,