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अनाथी मुनि भाग ३०
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लाभपाम्यो . धर्मध्यानमां विघ्न करवावालुं भोग भोगववा संबंधी में तमने हे महा भाग्यवंत ! जे आमंत्रण दीधुं ते संबंधीनो मारो अपराध मस्तक नमावीने क्षमावुंकुं." एवा प्रकारथी स्तुति उच्चारीने राजपुरुष केशरी श्रेणिक विनयथी प्रदक्षिणा करी स्वस्थानके गयो.
महा तपोधन, महा मुनि, महा मज्ञावंत, महा यशवंत, महा निद्र्य अने महा श्रुत अनाथी मुनिए मगध देशना थेणिक राजाने पोतानां वितक चरित्रथी जे वोध आप्यो छे ते खरे ! अशरणभावना सिद्ध करे छे. महा मुनि अनाथीए भोगवेली वेदना जेवी, के एधी अति विशेष वेदना अनंत आत्माओने भोगवता जोइए छीए ए केतुं विचारवा लायक छे! संसारमा अशरणता अने अनंत अनाथता छवाई रही छे. तेनो त्याग उत्तम तत्त्वज्ञान अने परम शीलने सेववाथीज थाय है. एज मुक्तिनां कारणरूप छे. जेम संसारमा रह्या अनाथी अनाथ हता तेम प्रत्येक आत्मा तत्त्वज्ञाननी प्राप्ति विना सदैव अनाथ ज है, सनाय थवा सददेव, सदूधर्म अने सद्गुरुने जाणवा अने ओळखवा ए अवश्यनुं छे.