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सदेवतरक हास्य, रति, अरति, भय, जुगुप्सा, शोक, मिध्यात्व, अज्ञान, अप्रत्याख्यान,राग, देप, निद्राउने काम एअनार क्षणयीजे रहित); सचिदानंदस्वरूपथी विराजमान छे, महाउद्योत कर पार गुणो जेभोने प्रगटे छे जन्म, मरण अने अनंत संसार जेनो गयो छे तेने निग्रंयना आगममां सदेव कया छे. ए दोपरहित शुद्ध आत्मस्वरुपने पामेला होबाथी पूजनीय परमेश्वर कहेवायोग्य छे. उपरकयाते अहार दोपमांनो एक पण दोप होय त्यां सदेव-स्वरुप घटतुं नयी. आपरम तव महत्पुरूषोयी विभेप जाणडं अवश्य छे.
शिक्षापाठ ९. सद्धर्मतत्त्व.
अनादि काळयी कर्मनामनां बंधनयीआ आत्मासंसारगां सळया फरे छे. समय मात्र गतेने सर मुख नवी. जोगतिने र सेव्या फरे छे अने अधोगतिमा पडता आलाने परी सनार सदनाति आफ्नार परसु तेनु नाम 'धर्म' कोवाय छे, अने एज सत्य एखनो उपाय छे. वेधर्मसतना सह भगवाने भिन्न भिन भेद कमाये. तेमांना पुल्य : १. व्यवहारधर्म. २. निश्चयधर्म.
व्यवहारमा दया मुख्य छे. सत्यादि बाकीनां चार पहावतो ते पण दयानी रक्षा वास्ते छे. दयाना आठ भेद ऐः १. द्रन्यदया २. भावदया ३. स्वदया ४. परदया ५. सस्पदमा६.अनुबंधदया. व्यवहारदया .निधयदया.